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क्या राजधानी रायुपर में प्रशासन हिस्ट्रीशीटर बदमाश रोहित तोमर को जिलाबदर करने, घर पर बुलडोजर चलाने की हिम्मत दिखाएगा। क्या नेताजी ऐसे बदमाशों को अपना आशीर्वाद देना बंद करेंगे। 

चन्द्रकान्त शुक्ला

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान गुंडे-बदमाशों के हौसले बुलंद रहे। वजह थी पुलिसिंग का अभाव। कहा तो यह भी जाता रहा कि, पुलिस के हाथ बंधे हुए थे। किसने बांध रखे थे? यह कहना मुश्किल है। लेकिन यह जनचर्चा का विषय बन गया था कि, पुलिस अपना काम छोड़कर बाकी सब कर रही है।

अब सवाल यह उठता है कि, क्या सरकार बदलने के बाद वह गलत परंपरा बदलेगी। क्या गुंडे-बदमाशों के सिर पर से मंत्रियों, विधायकों का हाथ हट जाएगा। क्या थानों में मंत्री बंगले से बोल रहा हूं, टीआई साब... विधायक महोदय बात करेंगे... जैसे फोन आना बंद होंगे। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि जनचर्चा फिर से शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि, हाईपर क्लब के बाहर फसाद करने वाले आदतन बदमाश रोहित तोमर का बड़ा भाई फिर से शहर के बड़े नेता के घर मंडराने लगा है। दरबारियों की मानें तो इस वारदात से चंद रोज पहले ही उसे नेताजी का आशीर्वाद भी मिल गया था। तो क्या यह माना जाए कि, रोहित तोमर के हौसले उसी आशीर्वाद के चलते फिर से बुलंद हो गए? 

आरोपियों
पुलिस ने आरोपियों का निकाला जुलूस

 अब अगर इस बदमाश पर कड़ी कार्रवाई जैसे कि, जिला बदर करना, घर पर अवैध निर्माण को बुलडोजर से ढहाना आदि नहीं हुई.. तो राजधानीवासी यह मान लेंगे कि, सरकार बदली पर कल्चर नहीं बदला। हालांकि सरकार ने देर से ही सही, लेकिन जिस हिसाब से IPS अफसरों की पोस्टिंग की, उससे ऐसा लगा जरूर था कि, सरकार पुलिसिंग पर जोर देकर अपराधियों पर नकेल सकने की मंशा दिखा रही है। लेकिन मंशा रखने भर से सब कुछ ठीक नहीं हो जाता, सरकार में बड़े पदों पर बैठे लोगों को यह भी देखना होगा कि, उनके अपने बीच से कौन लोग इस मंशा पर पानी फेरने की कोशिशों में लगे हैं। 

राजधानी रायपुर में एक काबिल और जुझारू अफसर को एसपी बनाया गया है। वे अब तक प्रदेश के जिस जिले में भी रहे, नशे के खिलाफ अपने अभियान और गुंडे-बदमाशों को सुधारने की मुहिम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुके हैं। अब उन पर राजधानी को अपराधी तत्वों के चंगुल से मुक्त कराने की जिम्मेदारी है। अब तक उनकी ओर से की गई पहल सकारात्मक संकेत तो दे रहे हैं, लेकिन राजधानी के हर मामले में होने वाली सियासत से वे किस तरह निपटते हैं, उनकी कार्यकुशलता की असली परीक्षा इसी में होने वाली है।

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