रुचि वर्मा - रायपुर। घनघोर माओवाद की तकलीफों से घिरे राज्य के दक्षिण में शिक्षकों ने बच्चों का जीवन बदल डाला। दो राज्यों की सीमा पर बसे कोंटा के सरकारी स्कूल में छात्र कभी हिंदी में भी ठीक से बात नहीं कर पाते थे, लेकिन अब फर्राटेदार अंग्रेजी में बात कर रहे हैं। 2021 तक यहां बच्चों की जुबान हिंदी बोलने में भी लड़खड़ाती थी, लेकिन बीते तीन सालों में शिक्षकों ने यहां की तस्वीर बदल डाली। अब वे ना सिर्फ कैंपस, बल्कि बाहर भी बेहतरीन तरीके से संवाद कर रहे हैं।
कोंटा के स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में वर्ष 2021 में प्राचार्य के रूप में टी. श्रीनिवास राव की नियुक्ति हुई। उस वर्ष ही इस स्कूल को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट इंग्लिश माध्यम विद्यालय योजना में शामिल किया गया। यहां पहली से पांचवीं तक इंग्लिश माध्यम कक्षाओं का संचालन होता है। छठवीं से बारहवीं कक्षा तक हिंदी व इंग्लिश दोनों माध्यमों में पढ़ाई होती है।
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60 साल पुराने इस स्कूल में कभी थे छात्र
लगभग 60 साल पुराने इस स्कूल के वर्तमान प्राचार्य कभी यहीं छात्र हुआ करते थे। जब वे यहां नियुक्त हुए तो तब मात्र 129 छात्र ही अध्ययनरत थे। अब यहां इंग्लिश माध्यम में 446 बच्चे हैं। हिंदी व इंग्लिश दोनों माध्यम मिलाकर वर्तमान में 812 छात्र संख्या यहां है। प्राचार्य टी. श्रीनिवास राव ने बताया कि उन्होंने बच्चों को इंग्लिश भाषा में दक्ष करने के लिए नियम बनाया है। कैंपस में छात्रों को सिर्फ इंग्लिश भाषा में ही बात करने की अनुमति है। यहां ना सिर्फ सिलेबस और पढ़ाई की बात इंग्लिश में होती है बल्कि पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों से संबंधित चर्चा भी इंग्लिश में ही की जाती है।
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प्रधानमंत्री संग किया संवाद
इस विद्यालय के विद्यार्थी कक्षा दसवीं एवं बारहवी की परीक्षाओं में लगातार शत प्रतिशत उत्तीर्ण होकर शाला का गौरव बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम परीक्षा पर चर्चा के लिए राज्यस्तर पर चयनित 2 विद्यार्थियों में से एक इसी विद्यालय से था। यहां के शिक्षक विक्की फ्रेंक सिंह एवं शिक्षिका मीणा साहू द्वारा बच्चों को अंग्रेजी में दक्ष करने के लिए विशेष कक्षाएं संचालित की जाती हैं। वहीं बच्चों के शैक्षिक विकास के लिए क्षितिज कोचिंग के तहत संध्या समय में गणित और विज्ञान की भी अतिरिक्त कक्षाएं ली जा रही हैं। बीते 32 वर्षों से अध्यापन कार्य कर रहे प्राचार्य टी.श्रीनिवासन का कहते हैं कि शिक्षकों को अपने आपको कर्मचारी नहीं मानना चाहिए। इसे अपना धर्म समझें, तभी शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा।