रायपुर। छत्तीसगढ़ की सियासत में भूचाल लाने वाले शराब घोटले को लेकर दर्ज हुए FIR में बड़े खुलासे हुए हैं। FIR से यह भी पता चलता है कि, यह घोटला हुआ कैसे। ईडी की सूचना पर जिन लोगों के नाम पर एफआईआर दर्ज की गई है शराब घोटाले में उनकी भूमिका क्या रही, यह भी पता चला है। इस काली कमाई का कितना हिस्सा किस नेता, मंत्री और अफसरों को किस तरह से मिले इस बात का खुलासा भी FIR से होता है। इतना ही नहीं बल्कि FIR में यह भी दर्ज है कि, इस पैसे को नेताओं, अफसरों ने कहां-कैसे और किसके नाम पर निवेश किया, इन सभी प्रश्नों के जवाब एफआईआर में मौजूद हैं।
इन तीनों को बताया गया मास्टर माइंड
ED की सूचना पर ईओडब्ल्यू में दर्ज एफआईआर में अफसर अनिल टुटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर को शराब घोटाले का मास्टर माइंड बताया गया है। एफआईआर में शामिल बाकी आईएएस व अन्य सरकारी अफसरों और लोगों को सहयोगी बताया गया है। शराब घोटाले से होने वाली आमदनी का बड़ा हिस्सा इन्हीं तीनों मास्टमाइंड को जाता था। टुटेजा आईएएस अफसर हैं, जब यह घोटाला हुआ तब वे वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव थे। दूरसंचार सेवा से प्रतिनियुक्ति पर आए त्रिपाठी आबकारी विभाग के विशेष सचिव और छत्तीसगढ़ मार्केटिंग कार्पोरेशन के एमडी थे। वहीं अनवर ढेबर कारोबारी हैं। एफआईआर के अनुसार ढेबर और टुटेजा ने मिलकर शराब घोटाले की और रकम बंटवारे की पूरी प्लानिंग की थी।
परिवार के सदस्यों के नाम पर निवेश
दर्ज FIR के अनुसार अनिल टुटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और अनवर ढेबर ने शराब घोटाले से मिले पैसे को अपने परिवार वालों के नाम पर निवेश किया। टुटेजा ने अपने बेटे यश टुटेजा के नाम पर निवेश किया। वहीं, त्रिपाठी ने अपनी पत्नी मंजूला त्रिपाठी के नाम पर फर्म बनाया। उस फर्म का नाम रतनप्रिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड था। वहीं, ढेबर ने अपने बेटे और भतीजों के फर्म में पैसों को निवेश किया।
विवेक ढांड ने दिया संरक्षण
FIR के मुताबिक छत्तीगसढ़ के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड पर टुटेजा, त्रिपाठी और ढेबर के शराब सिंडीकेट को संरक्षण देने का आरोप है। इसके लिए ढांड को सिंडीकेट की तरफ से पैसे भी दिए जाते थे। रिपोर्ट के अनुसार इस बात का खुलासा 2020 में ढांड के यहां आयकर विभाग के सर्च के दौरान मिले दस्तावेजों से हुआ है।
मंत्री और सचिव को हर महीने मिलता था कमीशन
इस शराब घोटाले में तत्कालीन विभागीय मंत्री कवासी लखमा को हर महीने 50 लाख रुपये का हिस्सा मिलता था। एफआईआर के अनुसार लखमा के साथ ही विभागीय सचिव आईएएस निरंजन दास को भी सिंडीकेट की तरफ से 50 लाख रुपये हर महीने दिया जा रहा था।