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आप के दिल्ली के संतों के लिए योजनाओं की घोषणा करने के बाद से सोशल मीडिया पर भारतीय जनता पार्टी समर्थकों ने नूपुर शर्मा को दिल्ली का मुख्यमंत्री चेहरा बनाए जाने की मांग उठाई है। जानिये इनके बारे में...

Delhi BJP CM face Nupur Sharma: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही और चुनाव आयोग का तारीख घोषित करते ही भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का नाम एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। आम आदमी पार्टी के दिल्ली के संतों के प्रति अचानक उमड़े प्रेम ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा छेड़ दी है। इसी बीच भाजपा समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मांग उठाई है कि विवादों में रही पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को दिल्ली का मुख्यमंत्री चेहरा बनाया जाए। 

सोशल मीडिया पर क्यों उठी मांग?

सोशल मीडिया पर कई यूजर्स का कहना है कि नूपुर शर्मा को दिल्ली विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना चाहिए। कुछ ने तो यह तक दावा किया है कि भाजपा उन्हें बाबरपुर सीट से चुनाव लड़वा सकती है। यहां उनका मुकाबला आम आदमी पार्टी के गोपाल राय से हो सकता है। बता दें कि नूपुर शर्मा 2008 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष रह चुकी हैं और ABVP का छह साल का सूखा खत्म करने में सफल रही थीं। हालांकि, कुछ साल पहले नेशनल टीवी पर इस्लाम को लेकर विवादित बयान देने के बाद उन्हें भाजपा से निलंबित कर दिया गया था। बावजूद इसके, समर्थकों का मानना है कि उनकी हिंदुत्ववादी छवि पार्टी को दिल्ली में फायदा पहुंचा सकती है।  

भाजपा की रणनीति: हिंदू वोटबैंक साधने की कोशिश?

कुछ यूजर्स का यह भी मानना है कि भाजपा अगर नूपुर शर्मा को चुनावी मैदान में उतारती है, तो यह एक रणनीतिक निर्णय होगा। उनका उद्देश्य दिल्ली के हिंदू मतदाताओं को एकजुट करना हो सकता है। नूपुर शर्मा की छवि को लेकर पार्टी समर्थकों में सकारात्मक नजरिया है, जबकि विरोधी इसे विभाजनकारी एजेंडा बता सकते हैं।

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क्या नुकसान हो सकता है?

दिल्ली में मुस्लिम समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में नूपुर शर्मा की विवादित छवि भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है। पार्टी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके बयान या छवि से चुनावी नुकसान न हो। बता दें कि भाजपा ने अभी तक नूपुर शर्मा की भूमिका को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। पार्टी का अंतिम फैसला कुछ भी आ सकता है। दिल्ली चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी उनकी विवादित छवि को कैसे संभालती है और क्या दिल्ली के मतदाता इस कदम को स्वीकार करेंगे।

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