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हरियाणा विधानसभा चुनाव से ऐन वक्त पहले सीएम बदलना बीजेपी के लिए अच्छा रहा, लेकिन यही फॉर्मूला दिल्ली में आप के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। पढ़िये यह रिपोर्ट...

Delhi Assembly Election History: हरियाणा विधानसभा चुनाव से करीब छह माह पहले मनोहर लाल को मुख्यमंत्री पद से हटाकर नायब सैनी को सीएम बनाने के कदम को बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। आरएसएस ने तो यहां तक दावा किया है कि अगर पहले ही मनोहर लाल को सीएम पद से हटा देते तो यह चुनाव जीतने के लिए इतनी कड़ी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। अब सवाल उठ रहा है कि सरकार के प्रति नाराजगी को दूर करने के लिए सीएम बदल दिए जाए तो क्या जीत पक्की हो जाएगी। खासकर दिल्ली, जहां अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर आतिशी को सीएम पद की जिम्मेदारी दी गई है। इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको दिल्ली चुनाव के इतिहास को देखना पड़ेगा।

दिल्ली में सीएम बदलना बीजेपी के लिए पड़ा था भारी

दिल्ली में पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव हुआ था। इस चुनाव में भाजपा ने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 47.82 फीसद वोट के साथ 49 सीटें हासिल की थी। कांग्रेस की बात करें तो 34.48 प्रतिशत वोट मिले और 14 सीटों पर जीत हासिल की। जनता दल ने 4 और निर्दलियों के खाते में 3 सीटें गई थीं। बीजेपी ने सीएम पद के लिए मदनलाल खुराना के नाम का ऐलान किया। सीएम बनने करीब 3 साल बाद 26 फरवरी 1996 को उनकी जगह साहेब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया।

इसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आई तो साहेब सिंह वर्मा को सीएम पद से हटाकर सुषमा स्वराज को सीएम बना दिया गया। 12 अक्टूबर 1998 को सीएम बनने के बाद सुषमा स्वराज ने चुनाव प्रचार भी आक्रामक तरीके से किया, लेकिन अपनी पार्टी को जीत नहीं दिला पाईं और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रह गई। इसके बाद कांग्रेस ने शीला दीक्षित को सीएम बनाया। उनके नेतृत्व में लगातार चुनाव लड़ा और 15 साल तक शीला दीक्षित ही दिल्ली में कांग्रेस का चेहरा बनी रही।

सुषमा स्वराज भी शीला दीक्षित को नहीं हरा पाई

खास बात है कि सुषमा स्वराज भी शीला दीक्षित को हरा नहीं पाई। 1998 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद थी कि अगर सुषमा स्वराज के नाम पर चुनाव लड़ा जाए तो शीला दीक्षित हार जाएगी। लेकिन, कांग्रेस ने शीला दीक्षित पर ही दांव लगाया। नतीजा यह हुआ कि इस चुनाव में भी जनता ने शीला दीक्षित के नाम पर कांग्रेस को झोली भरकर वोट दिए। इस चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटें और बीजेपी को महज 15 सीटें मिली।

मदनलाल खुराना भी दिल्ली में कमल नहीं खिला सके

दिल्ली में पांच साल तक कांग्रेस का शासन देख बीजेपी को उम्मीद थी कि सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल सकता है। चूंकि दिल्ली के पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मदनलाल खुराना को सीएम बनाया था, लिहाजा 2003 में तीसरा विधानसभा चुनाव मदनलाल खुराना के चेहरे पर लड़ा। इस चुनाव में भी कांग्रेस ने 47 सीटें जीती, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले पांच अधिक सीटें जीततकर बीजेपी ने कुल 20 सीटें हासिल की। इस बार भी जीत का श्रेय शीला दीक्षित के सिर पर बंधा और फिर से सीएम चुन लिया गया।

शीला दीक्षित ने दिल्ली चुनाव में लगाई हैट्रिक

अब तक दिल्ली में कांग्रेस के शासन को दस साल हो चुके थे। चुनाव नजदीक आने के चलते बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी। इस बार शीला दीक्षित के मुकाबले विजय कुमार मल्होत्रा को चुनावी मैदान में उतारा। पिछले चुनावों की तरह बीजेपी ने कुछ सीटों में इजाफा हासिल कर लिया, लेकिन कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गई। 2008 के इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 43 सीटें और बीजेपी को 23 सीटें मिलीं। वोट शेयर की बात करें तो इस चुनाव में कांग्रेस ने 40.31 और बीजेपी ने 36.34 प्रतिशत वोट हासिल किए।

आप ने कांग्रेस को नहीं बल्कि बीजेपी को नुकसान पहुंचाया

आम आदमी पार्टी ने 2013 का दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया। भाजपा को उम्मीद थी कि 15 साल का सूखा समाप्त हो जाएगा। लेकिन, आम आदमी पार्टी ने पूरा गणित ही बिगाड़ दिया। इस चुनाव में भाजपा को 31, कांग्रेस को 8 और आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिली। कांग्रेस और शीला दीक्षित को कोसने वाले आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ऐन वक्त पर कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बना ली। हालांकि 49 दिन बाद सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।

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इसके बाद 2015 में दोबारा से विधानसभा चुनाव हुए तो आप ने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें हासिल कीं, जबकि बीजेपी को केवल 3 सीटें ही मिल पाई। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आप ने 62 सीटें लेकर बंपर जीत हासिल की, जबकि बीजेपी को महज 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस की बात करें तो इस चुनाव में भी सुपड़ा साफ रहा।

बीजेपी का फॉर्मूला आप के लिए बनेगा खतरा

राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी का दिल्ली में सीएम बदलने का असफल फॉर्मला आप के लिए भी फायदेवाला साबित नहीं हो सकता है। कारण यह है कि शराब घोटाला मामले में जिस तरह से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचा है, उसका नतीजा पिछले लोकसभा चुनाव में भी और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी देखा जा सकता है।

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आम आदमी पार्टी हरियाणा में 2 या 3 सीट भी जीतती तो उसे निश्चित रूप में बड़ी जीत मानी जाती, लेकिन अब आप अपनी छवि सुधारने की बजाए कांग्रेस पर ही दोष मढ़ने को तैयार हैं। अकेले चुनाव लड़ने की बात बोल रही है। अगर दिल्ली में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं होता, तो इन दोनों पार्टियों को खासा नुकसान होगा। उधर, बीजेपी का दावा है कि यह दोनों पार्टियां मिलकर झूठ बोलने और भ्रष्टाचार में लिप्त है। जनता जान चुकी है, लिहाजा गठबंधन हो या न हो, बीजेपी का आना तय है।

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