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16 दिसंबर, 2012 को निर्भया के साथ चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार ने महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे। 12 साल बीत जाने के बाद भी यह मामला लोगों के जहन में ताजा है और निर्भया की मां आशा देवी का दर्द आज भी कम नहीं हुआ है।

Delhi Nirbhaya Gang Rape Case: 16 दिसंबर 2012 की वह रात दिल्ली के इतिहास में एक काली तारीख के रूप में दर्ज हो गई। राजधानी की सड़कों पर चलती बस में एक 23 साल की छात्रा के साथ बर्बर सामूहिक बलात्कार किया गया।  निर्भया और उसके दोस्त को एक-एक कर के सड़क पर फेंक दिया गया था। निर्भया (बदला हुआ नाम) के साथ इस दरिंदगी ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस वारदात के 17 दिन बाद, 29 दिसंबर को सिंगापुर के अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई। 

8 साल लंबी कानूनी लड़ाई, फिर 2020 में दोषियों को मिली सजा

इस मामले में कुल छह आरोपी थे, जिनमें से एक नाबालिग था। मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली। नाबालिग को तीन साल सुधार गृह में रखा गया और 2015 में रिहा कर दिया गया। बाकी चार दोषियों—मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह को 20 मार्च 2020 को फांसी दी गई।  

'हालात अब भी वैसे ही हैं': निर्भया की मां आशा देवी का दर्द

निर्भया की मां आशा देवी ने महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि 2012 के बाद से कुछ भी नहीं बदला है, बल्कि हालात और बदतर हो गए हैं। 12 साल बाद भी हम वही मुद्दे उठा रहे हैं। हमारी बेटियों की सुरक्षा के लिए संघर्ष अभी भी जारी है। उन्होंने कहा कि दोषियों को सजा मिलने के बावजूद समाज और व्यवस्था में सुधार की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। दूसरी लड़कियों को न्याय नहीं मिला। हमें यह सोचना होगा कि हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं।

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'निर्भया' आंदोलन: बदलाव का प्रतीक या खोखली उम्मीद?

आशा देवी ने कहा कि आज भी हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। न्याय की उम्मीद करना बहुत मुश्किल हो गया है। जब तक हमारी व्यवस्था और समाज में सुधार नहीं होगा, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। बता दें कि इस घटना के बाद देश भर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बड़े आंदोलन हुए। नए कानून बने और बलात्कार के मामलों में सख्त सजा का प्रावधान किया गया। लेकिन आशा देवी का मानना है कि जमीनी हकीकत नहीं बदली है।  महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आने के बजाय वृद्धि हुई है, जो एक चिंता का विषय है।  

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 'निर्भया' के संघर्ष ने दिया सबक, लेकिन सफर अभी बाकी

आशा देवी के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए हमारा संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। 16 दिसंबर 2012 की घटना ने हमें झकझोरा था, लेकिन 12 साल बाद भी महिलाओं की सुरक्षा के हालात चिंताजनक बने हुए हैं। निर्भया मामले ने जहां एक ओर न्याय के लिए लंबी लड़ाई की मिसाल कायम की, वहीं यह भी साबित किया कि समाज और व्यवस्था में सुधार की राह कितनी कठिन है। यह हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य और भी अंधकारमय हो सकता है।

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