Delhi Swachh Survey Ranking: दिल्ली सरकार और एमसीडी द्वारा किए गए स्वच्छता के दावों के विपरीत, एक नए सर्वेक्षण ने शहर की स्वच्छता व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर किया है। यह सर्वेक्षण बताता है कि दिल्ली में अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है, खासकर शौचालयों की उपलब्धता के मामले में। दरअसल, दिल्ली में स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग का फील्ड असेसमेंट जनवरी से शुरू होगा। झुग्गी बस्तियों और पब्लिक स्थानों पर कम्युनिटी टॉयलेट्स की कमी के कारण एमसीडी की रैंकिंग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
आधे से भी कम हैं टॉयलेट सीट
दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में करीब 17 लाख की आबादी रहती है। स्वच्छ भारत मिशन गाइडलाइंस के अनुसार, यहां 48,000 से अधिक कम्युनिटी टॉयलेट सीट्स होनी चाहिए, लेकिन (DUSIB) दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के पास सिर्फ 21,923 सीट्स हैं। यह जरूरत की संख्या का आधा भी नहीं है।
पब्लिक टॉयलेट्स और यूरिनल्स की कमी
एमसीडी के क्षेत्र में कुल 1453 पब्लिक टॉयलेट्स और करीब 2300 यूरिनल्स हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली में कम से कम 7-8 हजार पब्लिक टॉयलेट्स और 4-5 हजार अतिरिक्त यूरिनल्स की जरूरत है। इसके साथ ही जन सुविधा कॉम्प्लेक्स के निर्माण में जमीन की कमी मुख्य चुनौती है। DUSIB ने कुछ स्थानों पर प्री-फैब्रिकेटेड और मोबाइल टॉयलेट्स लगाए हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं।
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रैंकिंग में आई गिरावट की वजह
स्वच्छता सर्वेक्षण में 22 फीसदी अंक पब्लिक टॉयलेट्स और उनकी सफाई पर आधारित हैं। टॉयलेट्स की कमी के कारण एमसीडी को पूरे अंक नहीं मिलते, जिससे हर साल रैंकिंग नीचे चली जाती है। यह ध्यान में रखते हुए, स्वच्छता रैंकिंग में सुधार के लिए पब्लिक और कम्युनिटी टॉयलेट्स की संख्या बढ़ानी होगी। पर्याप्त जमीन न होने पर मोबाइल और प्री-फैब्रिकेटेड टॉयलेट्स की संख्या में इजाफा करना जरूरी है। क्योंकि, टॉयलेट्स और सफाई की कमी दिल्ली की स्वच्छता रैंकिंग को प्रभावित कर रही है। जिस पर एमसीडी और DUSIB को मिलकर समाधान निकालने की जरूरत है, ताकि राजधानी की स्थिति बेहतर हो सके।
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