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हरियाणा के फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र में पहले पंजाबी समुदाय के नेता ही विधायक बनते थे, लेकिन हरियाणा गठन के बाद हुए 13 चुनावों में 6 बार पंजाबी तो 6 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की। समय के साथ क्षेत्र की परिस्थिति भी बदलती जा रही है।

सुरेन्द्र असीजा, फतेहाबाद: दिल्ली-फाजिल्का नेशनल हाइवे 9 पर स्थित फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र में 60 गांव पड़ते हैं। फतेहाबाद शहर में 60 हजार मतदाता है, जबकि विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 58 हजार 65 मतदाता इस बार अपने मत का प्रयोग करेंगे। फतेहाबाद हलका अपने आप में रोचक इतिहास समेटे हुए है। कभी पंजाबी बाहुल्य हलके के रूप में प्रदेशभर में विख्यात यहां से पंजाबी समुदाय का नेता ही विधायक बनता था। हरियाणा प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद यहां 13 आम चुनाव हुए, जिनमें से 6 चुनाव में पंजाबी समुदाय का नेता विधायक बना और 6 बार ही यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।

समय के साथ बदली परिस्थिति

फतेहाबाद विधानसभा में समय बदला तो परिस्थितियां भी बदली। कभी हलके से छेड़छाड़ तो कभी जात-पात के सहारे राजनीतिक उठा-पठक हर बार होती रही। कभी कांग्रेस तो कभी क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना दबदबा दिखाया, लेकिन 1987 में चौ. देवीलाल के सहारे फतेहाबाद में भाजपा का पहली बार कमल खिला और बलबीर चौधरी यहां से विधायक चुने गए। 32 साल बाद 2019 में फिर यहां भाजपा के दुड़ाराम जीतने में कामयाब रहे। ऐसे ही अनेक रोचक तथ्यों को यह क्षेत्र अपने अंदर समाए हुए है।

विधानसभा का अब तक का इतिहास

फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र से संयुक्त पंजाब के समय 1962 में हुए आम चुनाव में पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. देवीलाल निर्दलीय विधायक बने थे। हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र में 1967 से लेकर 2019 तक 13 आम चुनाव हो चुके हैं। इनेलो व कांग्रेस के प्रभाव वाली फतेहाबाद विधानसभा सीट पर हुए चुनाव में 6 बार कांग्रेस, 2 बार इनेलो, 2 बार भाजपा और 1-1 बार जनता पार्टी व हविपा के उम्मीदवार विजयी रहे हैं। हरियाणा प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद 1967 में हुए पहले चुनाव में पंजाबी दिग्गज गोबिंद राय बत्तरा फतेहाबाद से विधायक बने।

2000 में बने लीलाकृष्ण विधायक

साल 2000 में लीलाकृष्ण इनेलो की टिकट पर जीतकर विधायक बने, लेकिन महज दो साल बाद ही उनका निधन हो गया और उपचुनाव में उनकी पुत्रवधु स्वतंत्र चौधरी ने भजनलाल के भतीजे दुड़ाराम को हराकर विधायक बनने का गौरव हासिल किया। 2005 के आम चुनाव में दुड़ाराम ने अपनी हार का बदला लिया और पहली बार वो फतेहाबाद के विधायक बने। अगले चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर दुड़ाराम को टिकट थमाई तो कांग्रेस नेता प्रहलाद गिलाखेड़ा आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और सहानुभूति लहर पर सवार होकर आजाद विधायक बने।

2014 में इनेलो का बना विधायक

2014 के चुनाव में भाजपा की लहर के बावजूद फतेहाबाद से इनेलो उम्मीदवार के तौर पर बलवान सिंह दौलतपुरिया विधायक चुने गए। 2019 में दुड़ाराम भाजपा में शामिल हुए और मोदी लहर पर सवार होकर एक बार फिर विधायक बनकर विधानसभा में पहुंचे। अब बदले राजनीतिक हालात में भाजपा फतेहाबाद में एक बार फिर अपने दम पर कमल खिलाने की तैयारी में है तो कांग्रेस भी उसे पूरी टक्कर देती नजर आ रही है।

पिछले तीन चुनावों में हार-जीत का अंतर

फतेहाबाद विधानसभा में बहुत नजदीकी चुनाव हुए हैं, लेकिन पिछले तीन चुनाव काफी रोमांचक रहे। इन तीनों चुनावों में मौजूदा विधायक दुड़ाराम शामिल रहे और हार-जीत का अंतर तीन से साढ़े तीन हजार तक रहा। 2009 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर उतरे दुड़ाराम को आजाद उम्मीदवार प्रहलाद सिंह गिल्लाखेड़ा ने तीन हजार के करीब मतों से शिकस्त दी। 2014 के चुनाव में इनेलो उम्मीदवार बलवान सिंह दौलतपुरिया ने भी हजकां उम्मीदवार के तौर पर उतरे दुड़ाराम को तीन हजार मतों से ही मात दी। 2019 विधानसभा चुनाव में दुड़ाराम की जीत का अंतर तीन हजार के करीब ही रहा।

क्षेत्र के सबसे चर्चित विधायक

फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र के सबसे चर्चित विधायक पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. देवीलाल रहे हैं। उन्होंने संयुक्त पंजाब के समय 1962 में हुए चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और फतेहाबाद से जीत दर्ज की थी। हरियाणा को अलग राज्य बनाने में भी चौ. देवीलाल का विशेष योगदान रहा, लेकिन हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद उन्होंने दोबारा फतेहाबाद से कभी चुनाव नहीं लड़ा। फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र से उनका विशेष लगाव रहा। हलके के ग्रामीणों से उनका अंतिम समय तक जुड़ाव रहा।

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