दलबीर सिंह, भूना: गांव भूथनखुर्द के एमए पॉलटिकल साइंस एवं बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर चुके 26 वर्षीय युवा किसान रवि पूनिया ने खेती की नई तकनीक को अपनाकर मात्र आधी कैनाल जमीन में प्रतिवर्ष एक लाख से भी ज्यादा की पैदावार ले रहा है। युवा किसान फसल को बाजार में बेचने नहीं जाता, बल्कि खरीददार उनके खेत में घर पर आते हैं। सब्जी मंडी में लौकी यानि घीया सस्ते दामों पर भले ही मिलती हो, मगर रवि पूनिया की 5 से 7 फुट के करीब लंबी लौकी प्रति पीस एक हजार रुपए से अधिक में बिकती है, क्योंकि उपरोक्त लौकी पूरी तरह से ऑर्गेनिक होने के कारण टुकड़े करने के बावजूद एक सप्ताह तक खराब नहीं होती। इसका जूस निकाल कर पीने से कई तरह से मानव शरीर में फायदे मिलते हैं।
मचान विधि से लौकी का किया उत्पादन
युवा किसान ने बताया कि देसी किस्म एनएस की लौकी की खेती में पिछले 5 वर्षों से मचान विधि द्वारा लगातार बीज उत्पादन कर रहा है। मचान विधि द्वारा खेती करने से फसल उत्पादन क्षमता बढ़ती है और किसान उपरोक्त विधि अपनाने से दूसरी फसल भी साथ में ले सकते है। किसान मचान विधि द्वारा अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। युवा किसान रवि पूनिया ने बताया कि देसी किस्म एनएस के साथ-साथ वह छह अन्य और लौकी की किस्मों का बीज उत्पादन कर रहा है। उपरोक्त किस्में अपने आप में अद्भूत सराहनीय किस्में है, इसलिए दूसरे किसान परंपरागत खेती को छोड़कर नई तकनीक खेती को अपनाएंगे तो मुनाफा भी कई गुना बढ़ जाएगा।
इस समय करें देसी लौकी की बिजाई
बीएससी एग्रीकल्चर पास युवा किसान रवि पूनिया ने बताया कि बिजाई का समय उत्तर भारत में इन सभी किस्मों की बुआई जुलाई माह से लेकर मध्य अगस्त तक की जा सकती है, जबकि दक्षिण भारत में इनकी बुआई जुलाई माह से लेकर जनवरी तक की जा सकती है। ये सभी किस्में बुआई के 60 दिनों में फसल देना शुरू कर देती हैं। एनएस देसी किस्म लौकी के पूर्ण विकसित फलों की लंबाई 6 से 7 फीट तक चली जाती है। एक लौकी का वजन सामान्यत 8 से 10 किलोग्राम तक हो जाता है। 2 से 3 फीट तक फल खाने व जूस निकाल कर पीने में बहुत ही गुणकारी रहता है। उसके बाद फल दिखाने व सजावट करने के लिए भी बड़े-बड़े फाइव स्टार होटल में डिमांड रहती है।
लौकी उत्पादन 600 से 900 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
कृषि विशेषज्ञ रवि पूनिया ने बताया कि मेरा उद्देश्य केवल बीज उत्पादन करना है और जन-जन तक पहुंचना है ताकि लोग भी अच्छी व गुणकारी सब्जियों के बीज लगाकर स्वास्थ्य व आमदनी बेहतर कर सकें। मचान विधि से खेती करने से किसान एक समय में एक लागत लगाकर दूसरी खेती करके भी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। मचान विधि से एनएस देसी किस्म लौकी की प्रति हेक्टेयर 600 से 900 क्विंटल का उत्पादन क्षमता ली जा सकती है। उपरोक्त खेती के लिए जंगली जानवरों से भी बचाना जरूरी है और नियमित रूप से निगरानी रखने पर ही फसल उत्पादन अधिक मात्रा में लिया जा सकता है।
गोल्डन लहसुन के बीज में लाखों कमाए
रवि पूनिया ने पिछले वर्ष गोल्डन लहसुन का बीज तैयार करके लाखों रुपए की आमदनी ली थी। किसान ने एक हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से लहसुन बिक्री किया था। युवा किसान का मानना है कि उपरोक्त लहसुन गठिया व अन्य कई बीमारियों में काम आता है, इसलिए पंसारी दुकान पर गोल्डन लहसुन की कीमत दो गुना बढ़ जाती है। डेढ़ से दो फीट लंबा करेला व देसी गिलकी तौरई की किस्में भी ट्रायल के तौर पर लगा रखी है। जिला बागबानी अधिकारी डॉ. श्रवण कुमार ने बताया कि किसानों को परंपरागत खेती से मोह भंग करना पड़ेगा और नई तकनीक की खेती को अपनाएंगे तो आर्थिक रूप से संपन्न होंगे। सरकार भी किसानों को खेती में आगे बढ़ाने के लिए हर संभव मदद कर रही है।