हांसी/हिसार: चंडीगढ़ पुरातत्व विभाग की टीम ने रविवार को चंडीगढ़ सर्कल अधीक्षक कामेई अथोइलू काबुई के नेतृत्व में हांसी किले की जमीन की ड्रोन से मैपिंग करवाई। मैपिंग के उपरांत ऐतिहासिक किले की जमीन पर किए गए अतिक्रमण का निरीक्षण किया। इस दौरान पुरातत्व विभाग (Archeology Department) की चंडीगढ़ सर्कल की अधीक्षक पुरातत्वविद् कामेई अथोइलू काबुई के साथ पुरातत्व विभाग के कई अन्य अधिकारी भी उपस्थित रहे।
किले पर विकास कार्यों को जांचा
चंडीगढ़ पुरातत्व विभाग की टीम ने किले पर पिछले दिनों करवाए गए विकास कार्यों की गहनता से जांच की तथा विकास कार्यों में मिली कमियों को लेकर ठेकेदार को लताड़ लगाई। टीम ने ड्रोन उड़वाकर किले की जमीन का निरीक्षण करवाया ताकि पता लगाया जा सके कि किले की कितनी जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ है। किले की निरीक्षण रिपोर्ट को पुरातत्व विभाग किले की जमीन पर कब्जे को लेकर हाईकोर्ट (High Court) में विचाराधीन मामले में पेश करेगा।
नगर परिषद दे चुका है नोटिस
बता दें कि ऐतिहासिक किले की जमीन पर बसे 192 परिवारों को यह जमीन खाली करने के लिए बीते महीने नगर परिषद (City Council) ने नोटिस दिए थे। नोटिस देकर उन्हें एक सप्ताह में जगह खाली करने के लिए कहा गया था। प्रशासन द्वारा इन परिवारों को बरवाला रोड पर बनाए गए मकानों में शिफ्ट किया जाएगा। इसको लेकर करीब 6 वर्ष पहले नगर परिषद ने सर्वे किया था। तब यहां पर 192 में से 163 कब्जाधारी ही मिले थे। 29 परिवार यहां से शिफ्ट कर चुके थे। तब सर्वे की रिपोर्ट में 163 अवैध कब्जाधारियों ने दो कमरों तक के मकान के 125 परिवार, तीन कमरों तक या उससे ज्यादा कमरों के मकान में रह रहे 38 परिवार बताए थे।
किले की जमीन पर 65 वर्षों से कब्जा
बता दें ऐतिहासिक किले की जमीन पर करीब 65 वर्षो से लोगों ने अवैध कब्जे कर अपने घर बनाए हुए हैं। केंद्र सरकार ने इन्हें हटाने का अभियान भी चलाया था लेकिन यहां से अवैध कब्जे नहीं हटा सके। मामले को लेकर पुरातत्व विभाग ने हाईकोर्ट में 2012 में केस दायर कर दिया। हाईकोर्ट ने इनके पुनर्वास को लेकर आदेश दिए थे। जिसके तहत बरवाला रोड पर कुलाना में 48 कनाल 1 मरला जमीन चिंहित की गई थी। यहां पर किले पर बसे लोगों के लिए पंचायती राज के अधिकारियों ने मकान बनवाए हैं। मकान बनाने का कार्य पूरा हो चुका है।
यह है किले का इतिहास
यह किला 12वीं सदी के प्रसिद्ध राजपूत योद्धा पृथ्वीराज चौहान द्वारा बनाया गया था। इसे जॉर्ज थॉमस ने 1798 में दोबारा बनवाया, जब उसने हांसी को अपनी रियासत की राजधानी बनाया, जिसमें हिसार और रोहतक (Rohtak) शामिल थे। जॉर्ज थॉमस को परास्त करने के बाद ब्रिटिश सेना ने इस किले को छावनी में तब्दील कर दिया। हालांकि सन 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ने इसे छोड़ दिया। चौकोर आकार का यह किला 30 एकड़ में फैला है, जो 52 फुट ऊंची और 37 फुट मोटी दीवार से घिरा है। यह प्राचीन भारत के सबसे मजबूत किलों में से एक है।
किले के दरवाजे आकर्षण का केंद्र
पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद किले में एक मस्जिद बनवाई गई। किले के दरवाजों पर अच्छी तरह से पक्षियों और जानवरों व हिंदू देवी-देवताओं की सुंदर छवि के साथ नक्काशी की गई है। बाद में फिरोज शाह तुगलक ने राजनीतिक कारणों की वजह से हिसार को हांसी से जोड़ने वाली एक सुरंग का निर्माण कराया। किले में भगवान बुद्ध और भगवान महावीर की मूर्तियां भी हैं। अष्टधातु से बनी 57 जैन मूर्तियां 1982 की खुदाई के दौरान बरामद हुई थी। इस किले को 1937 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने राष्ट्रीय महत्व का एक संरक्षित स्मारक घोषित किया था।
यह बोली अधिकारी
चंडीगढ़ सर्कल की अधीक्षक पुरातत्व विभाग की कामेई अथोइलू काबुई ने कहा कि किले की जमीन पर किए गए कब्जे को लेकर ड्रोन से मैपिंग करवाई है। किले पर किए गए कब्जे को लेकर हाईकोर्ट में मामला विचाराधीन है। इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश करेंगे। किले के विकास के लिए योजना बनाई हुई है। यहां पर पार्क बनवाया जाएगा। किले के बिजली व पानी के कनेक्शन के लिए आवेदन किया हुआ है।