देशभर में जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाएगा। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में भी इस पर्व को जोर-शोर से मनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। यहां के जन्माष्टमी उत्सव को देखने के लिए दूर-दूर से कृष्ण भक्त भारी संख्या में पहुंचते हैं। यहां श्रद्धालु सबसे पहले कुरुक्षेत्र के थानेसर स्थित ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं, इसके उपरांत महाभारत काल से जुड़े स्थानों की यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
चूंकि जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल का पूजन होता है, लिहाजा लोग अपने लड्डू गोपाल को भी कुरुक्षेत्र की यात्रा कराने के लिए भारी संख्या में पहुंचते हैं। अगर आप इस जन्माष्टमी पर अपने बाल गोपाल को धार्मिक स्थल पर ले जाने की प्लानिंग बना रहे हैं, तो आपको एक बार कुरुक्षेत्र की यात्रा पर अवश्य आना चाहिए। यह धर्मनगरी महाभारत काल के साथ ही राधा-कृष्ण के आखिरी मिलन की भी साक्षी रही है।
कुरुक्षेत्र से करीब 8 किलोमीटर दूर थानेसर में ब्रह्मसरोवर है, जिसे की बेहद पवित्र माना जाता है। यहां स्नान करने के साथ ही अश्वमेघ यज्ञ करने जैसा पुण्य मिलता है। यहां हर सोमवती अमावस्या पर मेला लगता है। इसके अलावा सूर्यग्रहण पर भी भक्त इस पवित्र ब्रह्मसरोवर में स्नान कर पापों से मुक्ति पाते हैं। इसके पीछे की कहानी भी बेहद रोचक है। बताया जाता है कि भगवान कृष्ण जब अपने मामा कंस का वध करने के लिए गोकुल से निकले, तो उस वक्त गोकुलवासी बेहद दुखी थे। उस वक्त भगवान कृष्ण ने सभी को वचन दिया था कि यह आखिरी मिलन नहीं है। एक बार फिर से उनसे मिलेंगे।
मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इस वचन को द्वापर युग में पूरा किया था। राधा भी गोकुलवासियों के साथ सोमवती अमावस्या पर कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर में आई थीं, जहां उनका तमाल वृक्ष के सामने आखिरी मिलन हुआ था। यह वृक्ष ब्रह्मसरोवर तट पर व्यास गौड़िया मठ में है। भक्त ब्रह्मसरोवर में स्नान करने के बाद इस तमाल वृक्ष के भी दर्शन करते हैं।
तमाल वृक्ष राधा-कृष्ण मिलन का साक्षी
मान्यता है कि वृंदावन के निधि वन में भगवान कृष्ण और राधा रानी हर रात रासलीला करते हैं। यहां तमाल वृक्ष हैं, जोकि रात के समय गोपियों में बदल जाते हैं। रात के समय यहां आने की अनुमति किसी को नहीं है। निधि वन के बाद कुरुक्षेत्र का ब्रह्मसरोवर ही ऐसा है, जिसके तट पर तमाल वृक्ष है।
इस वृक्ष की बनावट बेहद अनोखी है। इस वृक्ष की टहनियां नीचे से ऊपर की ओर एक दूसरे से लिपटी हैं। बताया जाता है कि इस वृक्ष पर साल में एक बार खास तरह के पुष्प आते हैं, जिसकी सुगंध से पूरा वातावरण सुंगधित हो उठता है।
कुरुक्षेत्र में हुआ था भगवान कृष्ण का मुंडन
कुरुक्षेत्र की धरती पर ही महाभारत का युद्ध हुआ था। अधिकांश लोग यही मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध के चलते ही कुरुक्षेत्र आए थे। बता दें कि महाभारत युद्ध से पहले भी भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र आ चुके हैं। बताया जाता है कि भगवान कृष्ण 5 साल की उम्र में अपने भाई बलराम के साथ इस धर्मनगरी में आए थे। मौका था कि दोनों का मुंडन होना था। कृष्ण और बलराम का मुंडन एक विशाल वटवृक्ष के नीचे हुआ था। यह स्थान देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ के रूप से पहचाना जाता है। यहां एक खूबसूरत तालाब होने के साथ ही तक्षेश्वर महादेव मंदिर भी है। अगर कभी कुरुक्षेत्र आना हो, तो इस शक्तिपीठ के भी दर्शन अवश्य करने चाहिए।