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हरियाणा के नारनौल में गांव गोठड़ी का जमीनी पानी दूषित हो रही है। इंडस्ट्रीज मालिक रिचार्ज बोरवेलों में दूषित कैमिकल छोड़ रहे हैं। कैमिकल युक्त पेयजल से स्वास्थ्य खराब हो रहा है और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो रही है। साथ ही फसल भी खराब हो रही है।

नारनौल: गांवों की आबोहवा सेहत के लिए फायदेमंद होती है। अब इस धारणा को इंडस्ट्रीज ने मिथ्या साबित करना शुरू कर दिया है, क्योंकि गोठड़ी गांव के पास राजस्थान केशवाना में स्थापित इंडस्ट्रीज मालिक रिचार्ज बोरवेलों में दूषित कैमिकल छोड़ रहे हैं। इसके धुआं से ग्रामीणों की फसल तथा कैमिकल युक्त पेयजल से स्वास्थ्य खराब होने लगा है। बीते तीन साल के दौरान 45 से अधिक ग्रामीणों को कैंसर हो चुका, जिनकी लंबे उपचार के बाद मौत भी हो चुकी है। दूसरी ओर जहरीले धुआं के चलते नजदीकी करीब 120 एकड़ रकबे की फसल खराब हो जाती है।

हरियाणा-राजस्थान सीमा पर बसा गांव गोठड़ी

गोठड़ी गांव राजस्थान व हरियाणा की सीमा पर बसा हुआ है। गांव में चार परिवार तथा पांच हजार से अधिक आबादी है। समीप ही राजस्थान के केशवाना में 25 साल से फैक्टरी संचालित हैं। जहां बीते 10 साल में विभिन्न कारखानों की संख्या कई गुणा बढ़ गई। इनमें अधिकतर फैक्टरी कीटनाशक दवाई, इत्र, रबड़, प्लास्टिक बैग व कैमिकल का उत्पाद करती हैं। ऐसी उत्पाद प्रक्रिया में पर्यावरण और भूजल का सर्वाधिक दोहन होता है। विशेषज्ञों के अनुसार दवाई, इत्र को फिल्टर करने में हजारों ग्लेन पानी खराब होगा, जिसको खुले में डालने पर कई महीनों तक उसकी दुर्गंध खत्म नहीं होती।

बोरवेल के जरिए जमीन में डाल रहे कैमिकल

इंडस्ट्रीज मालिकों ने जमीन में चौड़े चौड़े बोरवेल करवा रखे है, जिनमें कैमिकल युक्त दूषित पानी को छोड़ना आरंभ कर दिया। 300-400 फीट की गहराई पर एक ही जलस्रोत होने के कारण यह दूषित कैमिकल गोठड़ी गांव के बोरवेलों से निकलने लगा है। गांव के बोरवेलों का पानी मटमैला हो गया, जिसका इस्तेमाल करने से ग्रामीणों को कैंसर और हार्ट की समस्या बढ़ गई है। परेशान ग्रामीणों ने कोटपूतली जाकर स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई। इसके कारण हवा व जल प्रदूषण पर अंकुश नहीं लग पाया है।

जहरीली गैस के प्रभाव से पौधों के जल रहे पत्ते

गांव रामकरण कसाना के पूर्व सरपंच रामशरण ने बताया कि दवाई व कैमिकल इंडस्ट्रीज के पास लगभग 125 एकड़ रकबे पर विभिन्न फसलों की बिजाई होती है। हवा का रूख बदलते ही फैक्टरी का जहरीला धुआं खेतों की तरफ आने लगता है, जिसके प्रभाव से फसल के साथ बड़े पेड़ों के पत्ते भी जल गए हैं। फुटाव के लिए ग्रामीण खाद व सिंचाई भी करते हैं, लेकिन कोई राहत नहीं मिलती।

तीन साल में इनकी हुई कैंसर से मौत

चिकित्सीय रिपोर्ट के अनुसार दल्लाराम, भागीरथ, गुरुदयाल, सत्यनारायण, नाथी देवी, पूर्णसिंह, कैलाशचंद, गुल्लाराम, गैंदाराम, नंदाराम, सवाई सिंह, मूलाराम, दिनेश कुमार, भाताराम, रामेश्वर सिंह, रामस्वरूप को कैंसर हुआ था। जिनका जयपुर, दिल्ली एम्स में लंबे उपचार के बाद देहांत हो गया। कृषि विभाग के बीएओ डॉ. हरीश यादव ने बताया कि गोठड़ी में गाजर की फसल खराब होने की शिकायत नहीं मिली है। जल्द ही वहां जाकर स्थिति का निरीक्षण करेंगे। कई इंडस्ट्रीज की धुआं में मोनोआक्साइड गैस होती है, जिससे फसलों को नुकसान संभव है। निरीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक फसल के बचाव संबंधी योजना बनाई जाएगी।

जमीन के नीचे बार्डर नहीं, जलस्रोतों का मिलना संभव

अटल भूजल विभाग के सीनियर विशेषज्ञों के अनुसार जमीन के गर्भ में नालियां हैं, जिनमें पानी बहता है। इस दूषित पानी का बहाव गोठड़ी तक पहुंचता है या नहीं, यह मौका निरीक्षण करने पर पता चलेगा। समाधान के लिए ग्रामीणों को उपयुक्त व हरियाणा ग्राउंड वाटर सेल विभाग में शिकायत दर्ज करवानी होगी। इसके बाद मौका निरीक्षण करना संभव हो पाएगा।

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