केंद्र की ओर से नई पांच फसलों पर एमएसपी देने के प्रस्ताव को खारिज करने वाले किसान अब अंबाला के शंभू बॉर्डर की बैरिकेडिंग तोड़कर हरियाणा में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि अगर हम पर गोली भी चलाई गई, तो भी हम पीछे नहीं हटेंगे। किसान नेताओं ने तो यहां तक आह्वान कर दिया है कि वे सबसे आगे रहेंगे। उधर, गृह मंत्रालय ने भी पंजाब और हरियाणा सरकार को स्थिति नियंत्रण करने के लिए हर मदद उपलब्ध कराने की बात कही है। वहीं, पंजाब के किसानों और केंद्र के बीच चल रही इस तनातनी में हरियाणा के किसान भी इस आंदोलन में कूद गए हैं। जींद में खाप महापंचायत ने भी ऐलान कर दिया है कि संयुक्त किसान मोर्चा जब भी बुलाएंगे, हम इस आंदोलन में शामिल हो जाएंगे। चलिये जानने का प्रयास करते हैं कि इस आंदोलन में हरियाणा के किसान और खाप पंचायतें शामिल होती हैं, तो सीएम मनोहर लाल की सरकार पर इसका क्या असर पड़ सकता है।
हरियाणा के बड़े किसान आंदोलन
पहला बड़ा किसान आंदोलन 1980 में हुआ
हरियाणा के बड़े किसान आंदोलन की बात करें तो सबसे पहले 1980 में बड़ा किसान आंदोलन हुआ था। उस वक्त सीएम भजनलाल थे, जिन्होंने बिजली के फ्लैट रेट और स्लैब प्रणाली में बदलाव करने का प्रयास किया था। इसके विरोध में किसान सड़क पर उतर आए और बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया। किसानों को काबू करने के लिए पुलिस की ओर से फायरिंग की गई। इसमें भिवानी के रहने वाले महावीर सिंह की मौत हो गई थी। सरकार के कई विधायकों ने भी किसानों का समर्थन दिया। इसके बावजूद सरकार अपने फैसले पर अड़ी रही। ऐसे में किसानों ने भिवानी में बड़ी रैली करने का फैसला किया। किसान ने संघर्ष समिति का गठन करके पूरे प्रदेश के किसानों को एकत्रित होने का आह्वान किया। इसके आह्वान से भजनलाल की सरकार दबाव में आ गई और बिजली के फ्लैट रेट और स्लैब प्रणाली में बदलाव का फैसला वापस ले लिया।
दूसरा बड़ा आंदोलन 1991 में
इस आंदोलन के 11 साल बाद दूसरी बार हरियाणा में बड़ा किसान आंदोलन हुआ। उस वक्त भी भजनलाल ही प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने बिजली की कीमतें बढ़ा दी थीं, जिससे किसान खासे आक्रोशित थे। किसानों ने बिजली के बिल भरने बंद कर दिए और बिजली केंद्रों पर धरना प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। आज का दादरी जिला उस वक्त आंदोलन का केंद्र बिंदु था। किसानों की आवाज को दबाने के लिए सरकार ने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद दादरी जिले के कादमा गांव में पुलिस और किसानों के बीच झड़प हो गई, जिसमें आधा दर्जन किसान मारे गए। इस घटना के बाद तो किसानों ने ठान ली कि अब बिजली के बिल नहीं भरेंगे। यही नहीं, 1996 में जब नई सरकार आई, तब भी किसानों ने बिल नहीं भरा। किसानों ने बिजली माफी की मांग को लेकर आंदोलन चलाया। महेंद्रगढ़ के पास मंढियाली गांव में भी किसान विरोध में उतरे, जहां पुलिस की फायरिंग में 5 किसान मारे गए।
तीसरा बड़ा आंदोलन 2002 में
उस वक्त ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के सीएम थे। उन्होंने चुनाव प्रचार के वक्त नारा दिया था कि 'न मीटर होगा और न ही मीटर रीडर रहेगा'। उनके इस नारे की वजह से इनेलो की सरकार सत्ता में आ गई। सत्ता में आने के बाद ओम प्रकाश चौटाला ने किसानों पर दबाव बनाया कि बकाया बिलों का भुगतान करें। उनके इन बयानों से किसान दोबारा भड़क गए। किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया। किसानों को पता चला कि चौटाला वाया जींद होते हुए चंडीगढ़ जाएंगे। इस पर कंडेला गांव में किसान एकत्रित हो गए और चौटाला का रास्ता रोकने का प्रयास किया। पुलिस की फायरिंग में आठ किसान मारे गए। इस घटना को आज भी कंडेला कांड के नाम से जाना जाता है। इसके बाद चौटाला की सरकार सत्ता में नहीं आ पाई। यह पहला मौका नहीं है, जब किसानों का प्रदर्शन प्रदेश सरकार पर भारी पड़ा है। उपरोक्त किसान प्रदर्शनों के बाद भी हर सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।
जब भी आंदोलन उग्र हुए, तब सरकार को खामियाजा भुगतना पड़ा
1980 के आंदोलन की बात करें तो भजनलाल की सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। भजनलाल ने 11 साल 9 महीने 22 दिन तक शासन किया। उन्होंने जनता दल टूटने के बाद कांग्रेस का दामन थामा था। वो इतने दिग्गज नेता थे कि जनता टूटने के बाद प्रदेश की बागडोर संभाल ली थी। वे 29 जून 1979 से 22 जनवरी 1980 तक सीएम रहे। इसके बाद कांग्रेस से चुनाव जीता और सीएम बन गए। उनका कार्यकाल 22 जनवरी 1980 से 5 जुलाई 1985 तक रहा। लेकिन किसानों पर फायरिंग के चलते वे अगले चुनाव में सीएम नहीं बन पाए। उनके बाद बंसीलाल की सरकार आई। इसके बाद अलग-अलग दलों की सरकार आती जाती रही। दूसरा बड़ा आंदोलन 1991 में हुआ, लेकिन उस वक्त भी भजनलाल सीएम थे और उन्हें अगले चुनाव में फिर कामयाबी नहीं मिली।
इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला किसानों के हितैषी बताकर सत्ता में आ गए, लेकिन कंडेला कांड के बाद से उन्हें भी सत्ता गंवानी पड़ी। मतलब यह है कि जब भी किसानों को छेड़ा गया, तो सत्ता पक्ष को खासा नुकसान झेलना पड़ा। बताते चलें कि ओम प्रकाश चौटाला के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएम बने और बिजली के बिल माफ करने की घोषणा कर दी। यही नहीं, पुराने बिजली स्लैब भी बहाल कर दिए। भूपेंद्र हुड्डा के बाद से सीएम मनोहर लाल प्रदेश की बागडोर संभाल रहे हैं। पहले किसान आंदोलन को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा के किसान शांत नजर आए। इस बार के किसान आंदोलन में भी हरियाणा के आम किसान फिलहाल इस आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन खाप पंचायतों ने जिस तरह से ऐलान किया है, उससे हरियाणा बीजेपी का सतर्क होना लाजमी है।
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