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हरियाणा के रेवाड़ी विधानसभा चुनावों में पूर्वमंत्री कैप्टन अजय सिंह को भाजपा की आपसी गुटबाजी के लिए कामना करनी होगी, क्योंकि इस बार उनकी राह आसान नहीं है। कापड़ीवास के भाजपा में जाने के बाद चुनाव की सरगर्मिया तेज हो गई है।

नरेन्द्र वत्स, रेवाड़ी: पिछले विधानसभा चुनावों में पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव को भाजपा की आपसी गुटबाजी का खुलकर फायदा मिला था, जिस कारण वह अपने पुराने किले रेवाड़ी विधानसभा क्षेत्र से बेटे चिरंजीव राव को विधानसभा भेजने में कामयाब हो गए। भाजपा प्रत्याशी पर चिरंजीव की जीत महज 1317 वोटों से हुई थी, जबकि बागी कापड़ीवास 36 हजार मतों से ज्यादा अपनी झोली में डालकर भाजपा का खेल बिगाड़ गए। कापड़ीवास की एक बार फिर से भाजपा में वापसी ने कैप्टन के सामने अपने पुराने किले को बचाने की नई चुनौती खड़ी कर दी है, जिससे पार पाने के लिए कैप्टन को आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बार फिर से भाजपा के अंतर कलह की कामना करनी होगी।

80 के दशक में पहली बार विधायक बने थे कैप्टन अजय यादव

80 के दशक में रघु यादव के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिए जाने के बाद हुए उपचुनाव से इस हलके से पहली बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने कैप्टन अजय सिंह यादव ने लगातार 6 बार जीत हासिल करने में सफलता हासिल की। इस दौरान उन्हें कापड़ीवास, पूर्व जिला प्रमुख सतीश और विजय सोमाणी से कड़ी चुनौती तो मिलती रही, लेकिन यह उन्हें हराने में कामयाब नहीं हो सके। कापड़ीवास ने पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 1996 में कैप्टन को कड़ी चुनौती पेश की थी। 2005 में एक बार फिर से कापड़ीवास भाजपा की टिकट पर कैप्टन को चुनौती पेश कर चुके थे। दोनों बार ही वह जीत हासिल करने में कामयाब नहीं रहे। इस सीट पर मुकाबले का त्रिकोणीय बनना ही हमेशा कैप्टन के लिए जीत का आधार साबित हो चुका है।

2014 में मोदी लहर का कापड़ीवास को मिला था लाभ

2014 के विधानसभा चुनावों में कापड़ीवास ने मोदी लहर की बदौलत कैप्टन अजयसिंह यादव को 52.92 फीसदी मतों के साथ हार का अनुभव कराया, तो इस मुकाबले में कैप्टन हार के साथ तीसरे नंबर पर पहुंच गए। इससे पूर्व सतीश यादव ने दो बार कैप्टन को टक्कर दी, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए। पहली हार के बाद ही कैप्टन ने रेवाड़ी का मैदान अपने बेटे चिंरजीव राव के लिए खाली कर दिया। चिरंजीव के सामने पिता के पुराने किले को सुरक्षित रखने की बड़ी चुनौती थी, जिसे भाजपा की फूट ने आसान बना दिया। भाजपा की ओर से चिरंजीव को यह सीट एक तरह से थाली में परोसकर गिफ्ट कर दी थी। कापड़ीवास की भाजपा में वापसी ने कैप्टन और उनके बेटे को नए सिरे से रणनीति तय करने के लिए मजबूर कर दिया।

कापड़ीवास का व्यक्तिगत जनाधार मजबूत

गत विधानसभा चुनावों में भाजपा से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले कापड़ीवास का राजनीतिक इतिहास देखा जाए तो व्यक्तिगत वोट बैंक के मामले में उनकी पॉजिशन काफी मजबूत है। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ते हुए भी 30 फीसदी से ज्यादा मतों को अपनी झोली में डालने में सफलता हासिल की थी। उनके इसी जनाधार को देखते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भूल सुधार करते हुए कापड़ीवास को एक बार फिर से भाजपा में शामिल कर लिया है।

कैप्टन के अनुकूल नहीं परिस्थितियां 

कांग्रेस के दिग्गज नेता कैप्टन अजयसिंह यादव के राजनीतिक सितारे इस समय गर्दिश में नजर आ रहे हैं। बेटे को विधानसभा में भेजने से पहले वह गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र से गत चुनावों में लगभग 5 लाख मतों के साथ राव इंद्रजीत सिंह को टक्कर दे चुके हैं, परंतु इस बार इस सीट पर कांग्रेस से दोबारा चुनाव लड़ने की संभावनाओं को उन्होंने खुद ही कम कर दिया है। उनके लिए बेटे को लगातार दूसरी बार विधानसभा में भिजवाने की राह अब काफी कठिन हो चुकी है।

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