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Haryana Assembly Election: हरियाणा में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में होंगे। पार्टियां चुनावी रण में उतरने के लिए तैयारी में लगी हुई हैं। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि बीजेपी के लिए इस बार चुनाव में जीत हासिल करना मुश्किल है।

Haryana Assembly Election: हरियाणा में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में होंगे। ऐसे में पार्टियों के बीच जीत को लेकर जद्दोजहद शुरु हो गई है। जिसके बाद पार्टियों के लिए लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना भी जरुरी हो गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि जब से विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हुआ है, तब से बीजेपी अपनी जीत का दावा कर रही है। इस संबंध में बीजेपी नेता अनिल विज का भी कहना है कि उनकी पार्टी पूरी तैयारी के साथ विधानसभा के रण में उतरेगी।

बीजेपी के लिए जीत क्यों मुश्किल है ?

भले ही अनिल विज ने बीजेपी पार्टी को लेकर जीत का दावा ठोंका है, लेकिन इसके बाद भी ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी के लिए इस बार जीत हासिल करना मुश्किल हो सकता है। दरअसल, जून में जब लोकसभा चुनाव हुए तो उस समय हरियाणा में बीजेपी की सीटें घटकर आधी हो गई थी। 2014 में बीजेपी ने 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, जो 2024 में 5 रह गईं। बीजेपी के वोट शेयर में भी 12 प्रतिशत की गिरावट आई। राज्य के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 44 में भाजपा, 42 में कांग्रेस और 4 में आम आदमी पार्टी (आप) आगे रही। पिछले चुनावों के परिणाम के अलावा इस बार पार्टियों को हरियाणा में विधानसभा चुनावों में कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है।

किसानों की मांगे

हरियाणा में किसानों का मुद्दा भी दलों के सामने चुनौती है। 2020-21 में वापस लिए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। कानूनों को निरस्त कर दिया गया था। जिसकी वजह से इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी पार्टी को किसानों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। बता दें कि इसका प्रभाव लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था। उस समय राज्य के कुछ हिस्सों में भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ प्रदर्शन किए थे। जिसके बाद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने 24 फसलों पर  एमएसपी की भी घोषणा की थी। लेकिन इस फैसले से कई किसान सहमत नहीं थे। इसके अलावा पंजाब के किसानों द्वारा शंभू सीमा पर चल रहा विरोध प्रदर्शन भी बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है।

जातिवादी समस्या

हरियाणा में जाट वोटरों का दबदबा देखने को मिलता है। ऐसे में जातिगत समस्या भी बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है। क्योंकि हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी गैर जाट समुदाय से संबंध रखते हैं। ऐसे में उनके जाटों का वोट उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनाया है। ऐसे में एक बार फिर चुनाव जाट बनाम गैर जाट की समीकरण पर हो सकता है।

आंतरिक गुटबाजी की समस्या

आंतरिक गुटबाजी भी विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए चुनौती है। क्योंकि भाजपा आंतरिक गुटबाजी से घिरी हुई है। जिसमें केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह कैबिनेट रैंक नहीं मिलने से नाराज हैं।  राज्य के पूर्व मंत्री अनिल विज तब से नाराज हैं जब से उन्हें इस साल मार्च में राज्य मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। पार्टी नेताओं के बीच मतभेद, खासकर राज्य और केंद्रीय नेतृत्व के बीच, चुनाव प्रचार में भाजपा के लिए चुनावी रण में मुश्किलें पैदा कर सकता है।

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अग्निवीर से जुड़े मुद्दे

भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को लेकर भी अभी हरियाणा में विवाद चल रहा है। क्योंकि विनेश फोगाट को पेरिस ओलंपिक में डिसक्वालीफाई कर दिया गया था। जिसके बाद से हरियाणा के कई लोग इससे से नाराज है। विधानसभा चुनाव में पार्टी के सामने यह भी कड़ी चुनौती साबित हो सकती है। इसके अलावा अग्निवीर मुद्दे से भी हरियाणा में भाजपा की संभावनाओं को काफी नुकसान पहुंचा है। क्योंकि कांग्रेस ने इसे वापस लेने की मांग की है।

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