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गुरुग्राम लोकसभा सीट पर जेजेपी से गठबंधन टूटने का कोई खास असर देखने को नहीं मिलेगा। इस सीट पर जेजेपी से ज्यादा इनेलो का पलड़ा भारी है। पिछले चुनाव में जेजेपी से अधिक इनेलो ने वोट हासिल किए थे।

नरेन्द्र वत्स, रेवाड़ी: पिछले लोकसभा चुनावों से पहले इनेलो में बिखराव के बाद जेजेपी अस्तित्व में आई। दोनों ही दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे। दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र में एक-एक प्रतिशत वोट भी नहीं मिल पाए थे। जेजेपी की तुलना में इस सीट पर इनेलो की स्थिति पूर्व में मजबूत रह चुकी है। ऐसे में गठबंधन टूटने का लोकसभा चुनावों में भाजपा को इस सीट पर कोई नुकसान होने की संभावना नहीं है।

2014 में इनेलो ने खेला था मुस्लिम कार्ड

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह के खिलाफ इनेलो ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए जाकिर हुसैन को मैदान में उतारा था। इनेलो का मेवात क्षेत्र में अच्छा जनाधार रहा है। पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला ने इस क्षेत्र के लोगों को साथ जोड़ने के सफल प्रयास किए थे। मेवात क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव रहा था। इसी प्रभाव के कारण जाकिर हुसैन लगभग 20 फीसदी मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी राव धर्मपाल महज 7.25 फीसदी मतों पर सिमटकर रह गए थे।

2009 में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे थे राव इंद्रजीत सिंह

2009 के लोकसभा चुनावों में राव इंद्रजीत कांग्रेस के प्रत्याशी रहे थे। उन्हें बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने 15.56 फीसदी मतों के साथ टक्कर देते हुए दूसरा स्थान हासिल किया था। इनेलो इस चुनाव में महज 0.22 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी। गत विधानसभा चुनावों में इनेलो और जेजेपी दोनों ने इस सीट पर प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। इनेलो के विरेंद्र राणा को 0.68 फीसदी और जेजेपी के महमूद खान को 0.62 फीसदी वोट ही मिल पाए थे। पूर्व के इन आंकड़ों से यह बात साफ हो रही है कि चौ. ओमप्रकाश चौटाला के पुराने गढ़ पर जेजेपी से ज्यादा इनेलो का दबदबा है। ऐसे में गठबंधन टूटने का इस लोकसभा सीट पर ज्यादा बड़ा असर होने की संभावना दूर तक नजर नहीं आ रही है।

कई विस हलकों में नहीं प्रभावी नेता

इनेलो से अलग होने के बाद जेजेपी ने भले ही गत विधानसभा चुनावों में जाटलैंड में भाजपा के विरोध पर 10 सीटें जीतने में सफलता पाई हो, परंतु अहीरवाल क्षेत्र में पार्टी के हाथ कुछ नहीं लगा। दुष्यंत चौटाला भले ही इनेलो के कुछ प्रभावशाली नेताओं को साथ जोड़ने में कामयाब रहे हों, परंतु दूसरे दलों से कोई भी बड़ा नेता उनके साथ खड़ा नहीं हुआ। संगठन स्तर पर भी पार्टी को विधानसभा चुनावों तक बड़ा बदलाव करना होगा।

कांग्रेस-भाजपा में असमंजस बरकरार

लोकसभा चुनावों की आचार संहिता कभी भी लागू हो सकती है। अभी तक कांग्रेस और भाजपा दोनों में गुरुग्राम से प्रत्याशी को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी। कांग्रेस में कैप्टन अजय यादव मैदान छोड़ने के बाद फिर टिकट का जुगाड़ बैठाने में लगे हुए हैं। उनके रहते दूसरे दावेदारों की उम्मीद टूट रही है। भाजपा में राव इंद्रजीत सिंह की टिकट को लेकर भी स्थित साफ नहीं है। समर्थक भले ही आश्वस्त हों, लेकिन इस सीट पर कुछ भी हो सकता है।

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