हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी के बीच गठबंधन टूटने पर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि बीजेपी-जजपा ने समझौता तोड़ने का अघोषित समझौता किया है। इस बार बीजेपी के इशारे पर जजपा और इनेलो वाले कांग्रेस की वोट में सेंध मारने आ गए हैं। उनका यह बयान दर्शाता है कि चुनाव के बाद बीजेपी-जजपा फिर से गठबंधन में आ जाएंगे। हालांकि इस सवाल का जवाब तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, लेकिन यह जरूर है कि बीजेपी-जजपा गठबंधन टूटने से बसपा को खासी उम्मीद जगी है। यही कारण है कि इनेलो भी बसपा से गठबंधन को लेकर उम्मीद की निगाहें टिकाए बैठी हैं। जानिये इन दलों के बीच कैसा है राजनीतिक संबंध...
इनेलो-बसपा के बीच गठबंधन होगा?
इनेलो ने जब भी गठबंधन किया है, तो फायदा ही मिला है। 1998 के लोकसभा चुनाव में इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया था। कुल 10 सीटों में से सात सीटों पर इनेलो और तीन सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से एक ही सीट पर बसपा का प्रत्याशी जीत पाया था। ऐसे में 1999 में जब बीजेपी की केंद्र सरकार गिर गई तो दोबारा से उपचुनाव हुए, जिसमें इनेलो ने बसपा से गठबंधन तोड़ दिया था।
2004 लोकसभा चुनाव इनेलो और बसपा ने अकेले लड़ा
हरियाणा में 2004 लोकसभा चुनाव भी बसपा और इनेलो ने अकेले लड़ा। दोनों दलों ने सभी दस सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी प्रत्याशी नहीं जीत सका। कांग्रेस ने 42.13 फीस वोट शेयर हासिल करके 9 सीटें जीती थी, जबकि सीट सीट बीजेपी के खाते गई थी। बीजेपी को 17.21 फीसद वोट मिले थे। इनेलो की बात की जाए तो भले ही सीट नहीं मिली, लेकिन वोट शेयर 22.23 फीसद रहा। हरियाणा विकास पार्टी को 6.25 जबकि बसपा को 4.98 प्रतिशत वोट शेयर मिला। उम्मीद थी कि 2009 के लोकसभा चुनाव में इनेलो बसपा गठबंधन कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
2009 लोकसभा चुनाव में इनेलो-बीजेपी का हुआ गठबंधन
2009 के लोकसभा चुनाव में इनेलो और बीजेपी ने गठबंधन किया था। दोनों दलों ने 5-5 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने जहां 9 सीटें हासिल की, वहीं बीजेपी और इनेलो को एक भी सीट नहीं मिल पाई। इनेलो को 15.9 और बीजेपी को 12.1 फीसद वोट मिले। अन्य के खाते में 4.6 फीसद वोट गए। इसके बाद से बीजेपी और इनेलो के बीच खार बढ़ने लगी। इसका परिणाम 2014 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला।
गद्दारी हो जिसकी बुनियाद, अंजाम-ए-मीनार होना ही था बर्बाद!
— Abhay Singh Chautala (@AbhaySChautala) March 12, 2024
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हजकां से किया गठबंधन
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में हजकां से गठबंधन कर लिया। हजकां अपनी दोनों सीटें यानी हिसार और सिरसा लोकसभा सीट हार गईं। हिसार से जहां इनेलो से दुष्यंत चौटाला ने बाजी मारी, वहीं सिरसा लोकसभा सीट पर चरणजीत सिंह विजेता बने। इनेलो को करीब 22 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बसपा की बात करें तो 4.6 वोट हासिल हुए। इनेलो को उम्मीद थी कि अगले चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ जाएगा, लेकिन उलटा अर्श से फर्श की कहावत चरितार्थ होती दिखाई दी।
जानिये क्या हुआ 2019 के लोकसभा चुनाव में
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया और सभी 10 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। वहीं, इनेलो से टूट के बाद बनी जजपा ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। सात सीटों पर जहां जजपा ने प्रत्याशी उतारे, वहीं तीन सीटों पर आम आदमी पार्टी ने भाग्य आजमाया। वहीं, इनेलो और बसपा ने भी अकेले चुनाव लड़ा। इसका खामियाजा दोनों दलों को भुगतना पड़ा। इनेलो का वोट शेयर जहां पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 22 प्रतिशत था, वहीं 2019 के चुनाव में महज 1.9 प्रतिशत वोट मिले। बीजेपी ने सबसे बड़ी पार्टी का खिताब जीता और सभी दस सीटें जीतकर 58.02 फीसद वोट हासिल किए। कांग्रेस को 28.42 फीसद, जजपा को 4.9 और बसपा को महज 3.65 प्रतिशत वोट ही हासिल हुए थे।
इनेलो से बसपा को अब खास उम्मीदें
इनेलो ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने के कई संकेत दिए थे, लेकिन तमाम प्रयासों को नजरअंदाज कर दिया गया था। यही नहीं, इससे पहले इनेलो ने बीजेपी से भी गठबंधन का असफल प्रयास किया था। इसके चलते अभय चौटाला ने पिछले दिनों बयान दिया था कि वो भाजपा में कभी गठबंधन नहीं करेंगे। यही नहीं, इनेलो नेताओं ने भी दुष्यंत चौटाला पर भी लगातार हमला करते रहे हैं। अब बीजेपी और जजपा का गठबंधन टूटने से इनेलो को आस है कि प्रदेश में अगर बसपा और इनेलो मिल जाते हैं, तो जीत हासिल की जा सकती है।
दरअसल, प्रदेश में कुल जाट वोटर्स 22.2 प्रतिशत हैं, जबकि अनुसूचित जाती वोटर्स 21 प्रतिशत है। वहीं इनेलो को यह भी लग रहा है कि जाट वोटर्स ने दुष्यंत चौटाला के पक्ष में इसलिए वोट दिया था कि वो उनकी आवाज उठाएंगे, लेकिन वे बीजेपी से समझौता करके डिप्टी सीएम बन गए, लेकिन उनकी मांगों को पूरा नहीं किया। ऐसे में इनेलो को लगता है कि अगर बसपा से गठबंधन हो गया तो वोटों का सूखा खत्म हो सकता है।
बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का कर रखा है ऐलान
बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने हमेशा से कहा है कि उनकी पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। इसके बावजूद कांग्रेस और इनेलो की बसपा पर नजर है। कांग्रेस ने पहले ही आम आदमी पार्टी से हरियाणा में गठबंधन कर रखा है। वहीं, जजपा भी अकेले चुनाव लड़ने के दावे करती आई है। ऐसे में बसपा यह देखने में जुटी है कि अकेले चुनाव लड़ना ठीक रहेगा या फिर किसी राजनीतिक दल से गठबंधन करके यह परीक्षा पार की जाएगी। जानकार बताते हैं कि बसपा का हरियाणा में किसी अन्य दल से गठबंधन की संभावना कम ही नजर आती है क्योंकि अनुसूचित जाति के लोग उनके पक्के वोटर्स हैं। भले ही ज्यादा वोट प्रतिशत नहीं बढ़ा, लेकिन घटा भी नहीं है। ऐसे में बसपा तमाम परिस्थितियों का आकलन करने के बाद ही गठबंधन पर अधिकारिक घोषणा कर सकती है।