Logo
हरियाणवीं नोटा का बटन दबाने में भी कम नहीं है, क्योंकि कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आने की स्थिति में वोटर नोटा दबा देता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा का प्रयोग शुरू किया था और क्रमशः तीन जिलों में वोटरों ने जमकर प्रयोग किया, जिसमें अंबाला, रोहतक और सिरसा में वोटरों ने नाराजगी जाहिर की थी।

Haryana: हरियाणवीं नोटा का बटन दबाने में भी कम नहीं है, क्योंकि कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आने की स्थिति में वोटर नोटा दबा देता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा का प्रयोग शुरू किया था और क्रमशः तीन जिलों में वोटरों ने जमकर प्रयोग किया, जिसमें अंबाला, रोहतक और सिरसा में वोटरों ने नाराजगी जाहिर की थी। नोटा ने चुनावों में शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी जैसे सियासी दलों को भी नापसंद करते हुए नोटा को  अधिक वोट दे दिए थे। 80 प्रतिशत से अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों को भी वोटरों ने वोट देना उचित नहीं माना।

विभिन्न दलों के प्रत्याशियों को नोटा के आगे टेकने पड़े घुटने

चुनाव में राज्य के 34 हजार 220 लोगों को कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आया। उन्होंने ईवीएम पर नोटा दबाना ही उचित समझा था। आंकड़ों पर गौर करें, तो पहले नंबर पर अंबाला 7816 मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार को वोट देना उचित नहीं माना। दूसरे स्थान की बात करें तो जिला रोहतक रहा, यहां पर 4932 वोटरों ने नोटा को चुना। सिरसा तीसरे स्थान पर रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में 41 हजार 781 मतदाताओं ने सभी प्रत्याशियों को नकारते हुए नोटा को चुना, जो कुल मतदाताओं का 0.33 प्रतिशत रहा। तब सभी 10 लोकसभा सीटों पर 203 उम्मीदवार चुनावी रण में थे, जिनमें से 162 को नोटा से भी कम वोट मिले। सोनीपत में 23 और करनाल में 10 उम्मीदवार नोटा से हार गए थे।

भिवानी-महेंद्रगढ़ में सबसे कम नोटा का इस्तेमाल

एक भी लोकसभा सीट ऐसी नहीं थी, जहां नोटा को 2000 से कम वोट मिले हों। सबसे ज्यादा अंबाला में 7943 मतदाताओं ने नोटा को चुना, जबकि भिवानी-महेंद्रगढ़ में नोटा को सबसे कम 2,041 वोट मिले। फरीदाबाद में 4,986, गुड़गांव में 5,389, हिसार में 2,957, करनाल में 5,463, कुरुक्षेत्र में 3,198, रोहतक में 3,001, सिरसा में 4,339 व सोनीपत में 2,464 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना।

jindal steel jindal logo
5379487