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हरियाणा के महेंद्रगढ़ के क्षेत्र में सिंचाई के अभाव में सरसों व चने की फसल नष्ट होने की कगार पर है। सर्दी के कारण सिंचित फसल को भी नुकसान होने की संभावना है। लोगों को लागत राशि भी डूबने की चिंता सता रही है।

Mahendragarh: अबकी बार मावठ नहीं होना, किसानों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। क्योंकि सिंचाई के आभाव में किसानों की करीब 25 हजार एकड़ में खड़ी सरसों व चने की फसल नष्ट होने के कगार पर है। दूसरी ओर सर्दी के कहर से सिंचित फसल को भी नुकसान होने का अंदेशा बढ़ गया है। हालांकि जमीदार लोग इधर-उधर से पानी का प्रबंध करके फसल को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। किंतु नहरी पानी का अभाव और निजी बोरवेलों से आपूर्ति नहीं हो पा रही। ऐसे में उन्हें लागत राशि डूबने की चिंता सताने लगी है।

किसानों की आर्थिक व्यवस्था रबी सीजन पर निर्भर

आपको बता दें कि रबी सीजन की फसलें नकदी होती हैं और किसानों की आर्थिक व्यवस्था भी इसी फसल पर निर्भर रहती है। अक्टूबर महीने में हल्की बारिश होने पर नांगल चौधरी ब्लॉक (जिसमें 44 गांव निजामपुर के) में करीब 36 हजार एकड़ में सरसों की फसल उगाई गई थी। सात हजार एकड़ में चने और 11 हजार एकड़ में गेंहू की बीजाई हुई थी। विभाग के मुताबिक सरसों को बीजाई के एक महीने बाद सिंचाई की जरूरत होती है और दो से तीन महीने में चने को भी सिंचाई चाहिए। लेकिन नांगल चौधरी-निजामपुर के 70 फीसदी गांव नहरों से अटेच नहीं। जहां फसलों की सिंचाई बोरवेल या मावठ पर निर्भर होती है। गांव वाइज पांच या सात बोरवेलों में पानी है किंतु जलस्रोत इतना कम है कि किसान निजी खेतों की सिंचाई कर पाते हैं। ऐसे में मावठ ही एकमात्र विकल्प बच गया, परंतु अबकी बार मावठ नहीं हुई।

ठंड के कारण 18  हजार एकड़ सरसों की फसल मुरझाई 

कड़ाके की सर्दी पड़ने से विभिन्न गांवों में करीब 18 हजार एकड़ सरसों मुरझा चुकी है। पौधे का फुटाव रुक गया और फूल भी झड़ने आरंभ हो गए है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यदि अब बारिश भी हुई तो किसानों को कम ही पैदावार मिलेगी। इसके अलावा 2800 एकड़ में खड़ी चने की फसल लगभग नष्ट हो चुकी है, जिसका फुटाव संभव नहीं। 4450 एकड़ में खड़ी गेंहू की फसल तकरीबन नहरों के साथ लगती है, वहां सिंचाई व्यवस्था होने से किसानों को राहत है।

मावठ नहीं होने से यूरिया खाद की बिक्री पर पड़ा असर

सिंचाई से पहले सरसों में यूरिया खाद डाली जाती है। अबकी बार मावठ नहीं होने पर किसानों ने यूरिया नहीं खरीदा। दुकानदारों के अनुसार बीते साल की तुलना में 50 फीसदी बिक्री कम हुई है। कुछ किसानों ने चने का रकबा बढ़ा दिया, जिसमें खाद की जरूरत नहीं होती। कारोबार मंदा रहने से खाद विक्रेता भी परेशान दिखाई दे रहे हैं।

लागत राशि भी वसूल नहीं होगी, देनदारी की सता रही चिंता 

दौंखेरा, शहबाजपुर, नांगल दुर्गू, लूजोता, गोलवा के किसानों ने बताया कि बीजाई से पहले खाद-बीज, जुताई पर करीब 10 हजार का खर्चा आता है। अब सिंचाई नहीं होने के कारण फसल सूख गई, जिससे लागत राशि भी वसूल नहीं हो पाएगी। सरसों की बिक्री पर ही बच्चों की फीस, शादी तथा अन्य देनदारी निर्भर रहती है। ऐसे में उन्हें मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

सरसों का 50 फीसदी रकबा सूखाग्रस्त, चने की पूरी फसल चौपट 

कृषि विभाग के बीएओ डॉ. हरीश यादव ने बताया कि नांगल चौधरी ब्लॉक के 78 गांवों में 36 हजार एकड़ रकबे पर सरसों तथा सात हजार एकड़ पर चने की बीजाई हुई है। सिंचाई के अभाव में लगभग 50 फीसदी सरसों सूख गई, चने की पूरी फसल ही लगभग चौपट हो चुकी है। अबकी बार मावठ नहीं होने से किसानों को अधिक नुकसान हुआ है।

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