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हरियाणा के नारनौल में 11 गांवों की पंचायत ने शराब का ठेका न खोलने का प्रस्ताव आबकारी विभाग को दिया। विभाग ने प्रस्तावों को मुख्यालय पंचकूला भेज दिया, जहां उनकी सुनवाई होगी।

Narnaul: जिले के गांवों में खोले जाने वाले शराब के ठेकों एवं सब वेंडर से ग्रामीण खासकर महिलाएं काफी दुखी एवं परेशान रहती हैं। उन्हें शराबियों के कलह का आए दिन सामना करना पड़ता है। इसी से नाखुश होकर जिले की 11 पंचायतों ने आबकारी विभाग को उनके गांवों में शराब के ठेके नहीं खोलने के प्रस्ताव दिए। इन प्रस्तावों को एकत्रित करके आबकारी विभाग ने सुनवाई के लिए उच्चाधिकारियों को पंचकूला मुख्यालय भेज दिया। अब मुख्यालय को निर्णय करना है कि उक्त पंचायतों में शराब के ठेके खोले जाएं या नहीं।

राजस्व प्राप्ति के लिए आगकारी विभाग के जरिए होती है शराब की बिक्री

उल्लेखनीय है कि सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व की प्राप्ति आबकारी विभाग के जरिए शराब की बिक्री से होती है और इसी राजस्व के बल पर सरकार जनकल्याणकारी योजनाएं एवं विकास कार्य करवाती है। इसी कारण शहरों ही नहीं, गांवों में भी शराब के ठेके खोले जाते हैं। अब पॉलिसी बदली तो गांवों में शराब के सब-वेंडर भी खोले जाने लगे हैं। जहां से लोग शराब लेकर पीते हैं। अक्सर देखने में आता है कि शराब का अधिक सेवन कर लेने के बाद व्यक्ति गाली-गलौच या जोर-जोर से बोलने लगते हैं, जिससे गांव की शांति भंग होती है। शराब पीने के बाद झगड़ा हो जाने की संभावना भी कई गुना बढ़ जाती है। इसके अलावा शराब के नशे में गांव में महिलाओं व लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं भी बढ़ने लगती हैं। ऐसे में झगड़ा व आपसी तनाव भी बढ़ने की संभावना काफी बढ़ जाती हैं।

10 प्रतिशत ग्रामीण दे सकते हैं प्रस्ताव बनाकर

शांति बनाए रखने, झगड़ा, छेड़छाड़ व धार्मिक आस्था भंग न हो। ऐसे में जिस गांव में शराब का ठेका हो, उस गांव के दस ग्रामीण मिलकर आबकारी विभाग को शराब का ठेका नहीं खोले जाने का प्रस्ताव दे सकते हैं। गांव की आबादी के दस लोगों सहित ग्रामसचिव व सरपंच के हस्ताक्षर प्रस्ताव पर होने जरूरी हैं। मान लें कि किसी गांव की जनसंख्या दो हजार है, ऐसे में 10 प्रतिशत आबादी यानि 200 लोगों, ग्राम सचिव व सरपंच के हस्ताक्षर प्रस्तावर पर होने आवश्यक हैं।

डाटा एकत्रित कर भेजा जाता है मुख्यालय

सबसे पहले ग्रामीण अपना बनाया हुआ प्रस्ताव बीडीपीओ कार्यालय में जमा करवाते हैं। यहां से प्रस्ताव को डीडीपीओ विभाग में प्रेषित किया जाता है। इसके बाद ये प्रस्ताव आबकारी विभाग में पहुंचाया जाता है, जबकि पूर्व में ग्रामीण अपना प्रस्ताव सीधा आबकारी विभाग में ही जमा करवाते थे। अब नियमों में बदलाव के चलते उक्त प्रक्रिया के तहत कार्य हो रहा है। विभाग में प्रस्ताव के आने के बाद संबंधित गांव के पुलिस थाने से उस गांव के विगत दो सालों के अवैध शराब के मामलों सहित पूरी जानकारी एकत्रित कर रिपोर्ट बना मुख्यालय भिजवाई जाती है। इसके बाद मुख्यालय से आदेश आने पर विभाग के अधिकारी सरपंचों को सूचित करते हैं। बाद में तय तिथि पर सभी सरपंचों को मुख्यालय बुलाया जाता है। जहां आबकारी विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहते हैं।

इस बार इन गांवों के आए प्रस्ताव 

इस बार दिसंबर के अंत तक आबकारी विभाग ने पंचायतों से शराब के ठेके नहीं खोलने बाबत प्रस्ताव मांगें थे। जिस पर गांव अमरपुर जोरासी, भूषण खुर्द, जादूपुर, बदोपुर, खटोटी खुर्द, सिलारपुर मेहता, बांयल, मानपुरा, नांगल हरनाथ, खातोद एवं कौथल खुर्द के ग्रामीणों ने पंचायतों से मिलकर उनके गांवों में शराब के ठेके नहीं खोले जाने के प्रस्ताव दिए हैं। जिला आबकारी एवं कराधान आयुक्त अनिल शर्मा ने कहा कि उनके पास करीब एक दर्जन पंचायतों के प्रस्ताव गांवों में शराब के ठेके नहीं खोले जाने के आए थे। उन सभी प्रस्तावों को एकत्रित करके मुख्यालय पंचकूला भेज दिया है। इन केसों की अब वहीं पर सुनवाई होनी है।

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