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पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने डकैती और हत्या के एक मामले में अभियुक्तों की ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने मामले में सख्त टिप्पणी भी की है।

हाईकोर्ट: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने डकैती और हत्या के एक मामले में अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि भले ही इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साबित करने में साक्ष्य अधिनियम का पालन न किया गया हो, लेकिन यह सजा रद्द करने का आधार नहीं होगा। पीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा, जिसने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर अभियुक्तों को दोषी ठहराया था, जिसमें वे स्पष्ट रूप से अपराध करते हुए दिखाई दे रहे थे। हाई कोर्ट ने कहा कि फुटेज बिना प्रमाण पत्र के पेश किया गया था, इसलिए यह स्वीकार्य साक्ष्य नहीं है, लेकिन अन्य पुष्टि करने वाले साक्ष्यों की मौजूदगी दोष सिद्धि को साबित करने के लिए पर्याप्त है।

आरोपियों की निशानदेही पर बरामद हुआ सामान

जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस करमजीत सिंह ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार, यदि पुलिस हिरासत में आरोपित द्वारा दिए गए बयान के आधार पर कोई बरामदगी होती है, तो बयान का उक्त हिस्सा साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा, ताकि आरोपित को अपराध से जोड़ा जा सके। इस मामले में आरोपी शंकर, अजय, रफीक और लाला राम द्वारा दिए गए खुलासे के बयानों के आधार पर लूटी गई वस्तुओं (कपड़ों के बंडल) और उनकी बिक्री से प्राप्त राशि (1.80 लाख रुपए) बरामद की गई। भले ही साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी का अनुपालन न किया गया हो, लेकिन यह ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज दोष सिद्धि के निष्कर्षों को खारिज करने का आधार नहीं होगा।

डकैती व हत्या के मामले में थी सुनवाई

हाई कोर्ट ने डकैती और हत्या के एक मामले में पांच आरोपितों की अपील पर सुनवाई की थी। एफआईआर के अनुसार, उन्होंने गुरुग्राम में डकैती करने के लिए कंपनी के गार्ड की हत्या की। सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि पांच से छह लोग दीवार फांदकर कंपनी में घुसे और गार्ड लक्ष्मण सिंह की हत्या कर दी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपितों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह देखते हुए कि सीसीटीवी फुटेज में पूरी घटना कैद हो गई थी, जिसमें दिखाया गया कि कैसे आरोपी मृतक पर हावी हो रहे थे और आखिरकार उसकी हत्या कर दी गई।

ट्रायल कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष सीसीटीवी फुटेज पर आधारित हैं, लेकिन साक्ष्य के रूप में उक्त सीसीटीवी फुटेज को पेश करते समय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का पालन नहीं किया गया और इस प्रकार ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए दोष के निष्कर्ष को खारिज किया जाना चाहिए। तथ्यों की जांच करने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज की सीडी द्वितीय साक्ष्य है, क्योंकि मूल सर्वर या कंप्यूटर, जिसमें सीसीटीवी फुटेज संग्रहित किया गया था, उसे पेश नहीं किया गया। अभियुक्तों से लूटी गई वस्तुओं की बरामदगी जैसे अन्य पुष्टिकारक साक्ष्यों पर भी ध्यान दिया।

साक्ष्यों से आरोपियों का दोष हुआ सिद्ध

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि रिकार्ड पर मौजूद साक्ष्यों से यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि अभियुक्त-अपीलकर्ता ने मृतक लक्ष्मण सिंह की हत्या की थी, जो घटना के दिन कंपनी में सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात था। कोर्ट ने कहा कि लूटे गए कपड़ों के बंडलों और उक्त अपराध को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किए गए वाहन की बरामदगी तथा लूटे गए सामानों की बिक्री से प्राप्त आय से साक्ष्यों की श्रृंखला स्पष्ट रूप से जुड़ती है। जिससे यह पता चलता है कि यह आरोपी थे और उक्त अपराध को अंजाम दिया था। इसलिए उनकी अपील खारिज कर दी गई।

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