नरेन्द्र वत्स, Rewari: प्रदेश में भाजपा से गठबंधन टूटने के साइड इफेक्ट्स सामने आने लगे हैं। पार्टी के प्रदेश महासचिव श्यामसुंदर सभरवाल ने शनिवार को जेजेपी को अलविदा कर दिया। वह जल्द ही भाजपा ज्वाइन करने की घोषणा कर सकते हैं। सभरवाल इस साल के शुरू से ही केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के संपर्क में आने के बाद उनका आशीर्वाद मिलने का दावा करने लगे थे। सभरवाल के मैदान छोड़ने के बाद पूर्व विधायक रामेश्वर दयाल के लिए टिकट की राह आसान हो गई है।
2014 में इनेलो की टिकट पर लड़ा था चुनाव
श्यामसुंदर सभरवाल ने वर्ष 2014 में बावल विधानसभा क्षेत्र से इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ा था। वह 25.71 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। 2018 में इनेलो से अलग होकर दुष्यंत चौटाला की जेजेपी अस्तित्व में आई, तो सभरवाल इनेलो छोड़कर जेजेपी में शामिल हो गए। जेजेपी में उन्हें काफी समय तक जिलाध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी। गत विधानसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला ने विश्वास जताते हुए सभरवाल को बावल हलके से टिकट थमा दी। इस बार सभरवाल एक पायदान नीचे खिसक गए। वह 21.16 फीसदी मतों के साथ तीसरे नंबर पर आ गए। गत वर्ष बावल हलके से पूर्व विधायक रामेश्वर दयाल को जेजेपी ज्वाइन कराई गई। रामेश्वर दयाल को संगठन में सभरवाल से बड़ा स्थान देकर प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया। साथ ही विधानसभा चुनावों में उन्हें टिकट देने का भरोसा भी दिलाया गया। शायद सभरवाल को उसी समय इस बात का अहसास हो गया कि दुष्यंत आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी टिकट काटकर रामेश्वर को थमा सकते हैं।
राव के संपर्क में आने के बाद एक्टिव
सभरवाल ने जनवरी माह के पहले सप्ताह में ही केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को दिल्ली निवास पर जाकर नववर्ष की बधाई दी थी। वहां से लौटने के बाद सभरवाल के सुर बदल गए और दावा किया कि केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने उन्हें आशीर्वाद दे दिया है। अगले विधानसभा चुनावों में बावल से उन्हें ही राव इंद्रजीत सिंह का समर्थन मिलेगा। राव की ओर से एक बार भी इस मामले में ऐसी टिप्पणी नहीं की गई, जिसमें सभरवाल को आशीर्वाद देने के संकेत नजर आते हों।
टिकट कटने की आशंका से लिया फैसला
ऐसा माना जा रहा है कि रामेश्वर दयाल को जेजेपी के शीर्ष नेताओं ने सभरवाल के विकल्प के रूप में ही पार्टी ज्वाइन कराई थी। उनके जेजेपी में आने के बाद सभरवाल को टिकट कटने की आशंका परेशान कर रही थी। दूसरे पार्टी संगठन में भी उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा था। जिलाध्यक्ष और प्रदेश महासचिव के बीच तालमेल का अभाव साफ नजर आ रहा था। इसी वजह से सभरवाल ने लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी को अलविदा कर दिया।