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हरियाणा के सिरसा में लोकसभा व विधानसभा चुनावों में प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर कभी राजनीति की ध्रुवी माने जाने वाले डेरा सच्चा सौदा में इस बार खामोशी छाई हुई है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा की तरफ से अभी तक कोई फरमान जारी नहीं हुआ।

सुरेन्द्र असीजा, फतेहाबाद: लोकसभा व विधानसभा चुनावों में प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर कभी राजनीति की ध्रुवी माने जाने वाले डेरा सच्चा सौदा सिरसा में इस बार खामोशी छाई हुई है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा की तरफ से अभी तक कोई फरमान जारी नहीं हुआ। आमतौर पर हर चुनाव में डेरा का राजनीतिक विंग किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में मतदान करने के लिए अपने अनुयायियों को संकेत अवश्य देता है, जिसके बाद डेरे की 45 सदस्यीय कमेटी इसे अमलीजामा पहनाती थी, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा। माना जा रहा है कि सियासी वर्चस्व के जमीनी स्तर पर गिरने से डेरा प्रबंधकों की इस बार फरमान जारी करने की हिम्मत नहीं हो रही।

राम रहीम को सजा सुनाने के बाद मंत्री व संतरी खामोश

हरियाणा, पंजाब व राजस्थान की राजनीतिक विंगों के जरिए मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों सहित तमाम दलों के नेताओं को अपने डेरे पर नतमस्तक कराने वाले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सजा सुनाए जाने के बाद डेरा पर डोरे डालने वाले मंत्री व संतरी अब खामोश हैं। डेरा में धार्मिक गतिविधियों के साथ ही सियासी विंग की गतिविधियों पर ब्रेक लगे हुए है और सियासी विंग से जुड़े लोग भी नजर नहीं आ रहे। बता दें कि पिछले करीब दो दशक से पंजाब, हरियाणा में अपने लाखों वोटर्स पर प्रभाव रखने वाले डेरा में मंत्री और संतरी चुनावों में आशीर्वाद लेने जरूर पहुंचते थे लेकिन इस बार डेरे में खामोशी छाई हुई है।

1990 में डेरे का हुआ कमर्शियलाइजेशन

23 सितम्बर 1990 को गद्दी संभालने के बाद डेरा प्रमुख ने सबसे पहले डेरे का कमर्शियलाइजेशन किया। डेरा परिसर में न केवल वातानुकूलित मार्किट बनाई, बल्कि 1997 में एक शानदार रेस्टोरेंट, सिनेमा, अस्पताल, मॉल, दुकानें, बाजार, पैट्रोल पम्प, थ्री स्टार होटल भी बना डाले। इसी दौर में ही साल 2000 में डेरा ने अपनी भीड़तंत्र के बलबूते सरकारों को कठपुतली बनाने के मकसद से सियासी गतिविधियां बढ़ा दी। इसके लिए पांच राज्यों की राजनीतिक विंग का गठन डेरा ने किया। हालांकि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तीन राज्यों में यह विंग सक्रिय दिखी। साल 2012 के पंजाब विधानसभा चुनाव में डेरा ने कांग्रेस को सीधा समर्थन दिया, परंतु कांग्रेस हार गई। खास बात यह है कि डेरा पंजाब की मालवा बेल्ट में अपना असर बताता रहा।

2007 में शिअद 19 सीटों पर सिमटी

साल 2007 के चुनाव में मालवा बेल्ट से शिअद महज 19 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि कांग्रेस को 37 सीटें मिली थी। 2012 में मालवा इलाके से शिअद को 33 सीटें मिली हैं। खास बात यह है कि 2007 में शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार सरूप चंद सिंगला को 12 हजार से अधिक वोटों से हराने वाले डेरा प्रमुख के समधि हरमिंद्र सिंह जस्सी 6445 वोटों से हार गए। यही नहीं, साल 2016 के चुनाव में भी जस्सी मोड़ मंडी से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और 23087 वोटों से हार गए। खास बात यह है कि चुनावी परिणामों में डेरा के सियासी वजूद डोलने के बाद भी यहां पर पंजाब, हरियाणा के बड़े राजनेता नतमस्तक होते रहे। सत्ता यहां पर आकर झुकती रही।

2014 में अशोक तंवर को समर्थन दिया, वह भी हारे

2014 के लोकसभा चुनाव में सिरसा से डेरा ने कांग्रेस के अशोक तंवर को समर्थन दिया, पर वे करीब 1.15 लाख मतों से चुनाव हार गए। इसके बाद डेरा ने अक्तूबर 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया। हालांकि मोदी लहर के चलते 47 सीटों के साथ भाजपा की सरकार बन गई। पर खास बात देखिए डेरा प्रमुख ने पहली बार मताधिकार का इस्तेमाल सिरसा विधानसभा के एक बूथ पर किया। सिरसा विधानसभा में भाजपा तीसरे स्थान पर रही। पूरे सिरसा जिला में पांचों सीटों पर खाता नहीं खुला तो सिरसा संसदीय क्षेत्र की 9 सीटों में से 1 पर भाजपा जीत हासिल कर सकी। खैर इसके बाद भी यहां पर राजनेताओं की धमाचौक्कड़ी जारी रही।

2019 में भाजपा को सांकेतिक समर्थन दिया, वह जीत गई

2019 में डेरा द्वारा बीजेपी को सांकेतिक समर्थन दिया और भाजपा उम्मीदवार सुनीता दुग्गल ने यहां से जीत हासिल की। डेरा प्रमुख के जेल जाने के बाद से डेरा में पिछले कई सालों से भंडारे बंद थे लेकिन अब धीरे-धीरे डेरे में नामचर्चा जैसे कार्यक्रम फिर से शुरू हो गए हैं। हालांकि व्यापारिक गतिविधियां अब भी ठप्प है। डेरे में आने वाले अनुयायियों की संख्या सिमट कर रह गई है। यही कारण है कि डेरे की सियासी ताकत भी अब पहले जैसी नहीं रही। माना जा रहा है कि सियासी वर्चस्व के जमीनी स्तर पर गिरने से डेरा प्रबंधकों की इस बार फरमान जारी करने की हिम्मत नहीं हो रही।

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