Assembly Elections रोहतक। हरियाणा में पांच अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा व कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई चरम पर हैं। टिकट वितरण के बाद वीरवार को भाजपा में मंडल अध्यक्ष से लेकर मंत्री व पूर्व मंत्रियों के त्यागपत्र की झड़ी देखने को मिली। कांग्रेस में टिकट वितरण से पहले ही सैलजा व हुड्डा गुट मुख्यमंत्री पद पाने के लिए एक दूसरे के साथ शह-मात का खेल खेलने में लगे हुए हैं। जिसे रोक पाने में पार्टी आलाकमान भी खुद को असहाय महसूस कर रहा है।
विधानसभा चुनाव लड़ने की जिद्द पर अड़ी कुमारी सैलजा ने दलित कार्ड फेंककर सीएम पद पर अपनी दावेदारी को मजबूत किया। जिसकी काट में हुड्डा गुट ने दीपेंद्र हुड्डा से विधानसभा चुनाव लड़ने का दावा करवाकर बड़ी स्ट्राइक कर दी है। हुड्डा गुट की इस चाल को सैलजा-रणदीप को विस चुनाव लड़ने से रोकने की कवायद माना जा रहा है।
दो सदस्यीय कमेटी के सामने किया दावा
कांग्रेस ने हरियाणा में विधानसभा उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने के लिए अजय माकन व मधुसुधन मिस्त्री की दो सदस्यीय कमेटी बनाई है। सीईसी की मीटिंग में नामों पर चर्चा के बाद कमेटी गठित की। सूत्रों का दावा है कि दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसी कमेटी के सामने पांच अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने लिए टिकट की मांग की। ऐसे में यदि कमेटी दीपेंद्र हुड्डा के दावे को खारिज करती है तो उसे सैलजा व रणदीप के दावे भी खारिज करने होंगे। सैलजा और रणदीप को टिकट दिया जाता है तो फिर दीपेंद्र के चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ हो जाएगा।
इस खेल को ऐसे समझें
इसी साल जून में हुए लोकसभा चुनाव में सिरसा से सांसद चुनी गई कुमारी सैलजा मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए विधानसभा चुनाव लड़ने पर अड़ी हुई हैं। 2019 में मिली हार के बाद राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला एक बार फिर कैथल से चुनाव लड़ने का दावा ठोक रहे हैं। सीईसी की बैठक के बाद प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया द्वारा किसी सांसद को विधानसभा चुनाव न लड़वाने की घोषणा के बाद भी कुमारी सैलजा व रणदीप सुरजेवाला विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अड़े हुए हैं। जबकि हुड्डा गुट दोनों को विधानसभा चुनाव की दौड़ से बाहर रखने का इच्छुक हैं। सैलजा के साथ रोहतक से सांसद चुने गए दीपेंद्र हुड्डा के नए दावे को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
कांग्रेस में हावी रही है गुटबाजी
भूपेंद्र हुड्डा फिलहाल कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। जिन्हें पिछले कई सालों से कुमारी सैलजा अलग गुट बनाकर चुनौती देती रही हैं। लोकसभा चुनावों के बाद किरण चौधरी के कांग्रेस छोड़ने से हुड्डा के खिलाफ खड़ा रहने वाला एसआरके गुट टूटा तो 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए चौ. बिरेंद्र सिंह घर वापसी के बाद सैलजा के साथ खड़े हो गए। लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद कुमारी सैलजा अक्रामक दिख रही है।
सैलजा के बाद दीपेंद्र ने भी फंसाया
हुड्डा व सैलजा की गुटबाजी कांग्रेस नेतृत्व के लिए हमेशा से परेशानी बनी रही है। जिसके लिए दोनों गुटों को एक साथ बिठाकर इसे खत्म करने के प्रयास किए गए, परंतु आलाकमान अभी तक इसमें सफल नहीं हो पाया। सीईसी की मीटिंग के बाद कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया ने किसी सांसद को विधानसभा चुनाव न लड़ाने की बात कही। कुमारी सैलजा ने न केवल विधानसभा चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा को खुलकर रखा, बल्कि दलित कार्ड खेलकर मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी को भी मजबूत किया। जिसकी काट के लिए हुड्डा गुट द्वारा भी बड़ा दांव खेलने की उम्मीद थी। जिसे पूरा करने के लिए दीपेंद्र ने विधानसभा चुनाव लड़ने का दावा ठोककर पूरा कर दिया है।
धर्मसंकट में आलाकमान
हरियाणा में जाट मतदाता हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहा है। 2019 के चुनाव से पहले परिवार में हुई टूट के बाद जाट मतदाता देवीलाल परिवार से छिटककर भूपेंद्र हुड्डा की तरफ शिफ्ट हो चुका है तथा जून में हुए लोकसभा चुनावों में इसकी झलक भी देखने को मिली। सैलजा प्रदेश में दलितों का बड़ा चेहरा मानी जाती है तथा उनके दलित को सीएम बनाने के ब्यान को समाज में अपनी पकड़ को मजबूत करने से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस किसी को डर है कि हुड्डा की अनदेखी से जाट तो सैलजा की अनदेखी से दलित वोट उससे छिटक सकता है।