Logo
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि "संभावना" के तहत रविवार को रामदास उइके एवं साथी, हरदा द्वारा डंडा नृत्य की प्रस्तुति हुई।

आशीष नामदेव, भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि "संभावना" के तहत रविवार को रामदास उइके एवं साथी, हरदा द्वारा डंडा नृत्य की प्रस्तुति हुई। डण्डा नृत्य पूरे देश के लोक और जनजातीय क्षेत्रों में विभिन्न अवसरों पर किया जाता है। डंडा वादन के रूप में उपयोग किए जाने वाला संभवत पहला वाद्य है। 

मध्यप्रदेश की गोंड जनजाति और अन्य अंचलों में डंडा नृत्य का प्रचलन है, जिसे कहीं-कहीं सैला, सैरा, लहंगी आदि नामों से भी जाना जाता है। प्रदेश के निमाड़ अंचल में हरदा क्षेत्र के गोंड समुदाय द्वारा डंडा नृत्य हरियाली अमावस्या से लेकर पोला अमावस्या तक धूमधाम से किया जाता है। वर्षाकाल में प्रायः यह नृत्य धूम-धाम से किया जाता है, जिसमें सभी ग्रामीण जन हिस्सेदारी करते हैं। रक्षाबंधन के बाद भुजरिया के अवसर पर भी इस नृत्य का प्रचलन है। नृत्य में ढोल मांदल, झांझ, मंजीरा, बांसुरी, डण्डा आदि का प्रयोग कर गीत-गायन के साथ नृत्य किया जाता है।

बघेलखंड में व्यापक स्तर पर गाते है अहीर नायकों की वीर गाथाएं
वहीं संतोष यादव एवं साथी, सीधी द्वारा अहिराई लाठी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बघेलखंड में यादव समुदाय द्वारा ‘अहिराई नृत्य’, अहिराई-लाठी नृत्य’, ‘बीछी नृत्य’ के साथ-साथ व्यापक स्तर पर अहीर नायकों की वीर गाथाएं गाई जाती है। करतब प्रधान संगीतबद्ध लाठी संचालन को अहिराई-लाठी नृत्य कहा जाता है। यह नृत्य युद्ध कला पर आधारित है जो कि नगड़िया, मादर की थाप पर लयात्मक हो जाती है। नृत्य में पारंपरिक परिधान कुर्ता, धोती, चौरासी एवं लोक वाद्य नगड़िया, शहनाई, बांसुरी, मादर आदि का प्रयोग किया जाता है।

5379487