Bhopal Projects : तीन दशक पहले राजधानी को जिस हरियाली के कारण पहचाना जाता था, उसमें पिछले दस साल में सबसे बड़ा ग्रहण लगा है। इस दशक में या दो तीन साल पहले से अब तक चार लाख पेड़ काटे गए और इस समय में ही राजधानी के दो सबसे बड़े प्रोजेक्ट बीआरटीएस और स्मार्ट सिटी आए, जिसमें भोपाल की हरियाली को सबसे बड़ा नुकसान इसी में हुआ।
एजेंसियां इस स्थिति के लिए काफी हद तक जिम्मेदार
पर्यावरणविदों के अनुसार किए गए सर्वे का अनुमान है कि 2009 से 2019 के बीच एक दशक में भोपाल में चार लाख पेड़ काटे गए। इसके पहले शहर में हरित आवरण 35 प्रतिशत था, जो घटकर सिर्फ 9 प्रतिशत रह गया। पर्यावरणविदों के अनुसार अगर 29 हजार पेड़ और कट जाते तो यह घटकर 3 प्रतिशत ही रह जाता। पर्यावरणविदों के अनुसार पर्यावरण आवरण तेजी से घटने का सबसे बड़ा कारण अनियोजित शहरीकरण, बढ़ती आबादी, घटते एफएआर, सूखते झील, प्रदूषण और गिरते भूजल स्तर को पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ही सबसे बड़ा कारण है। राज्य सरकार और पीडब्ल्यूडी सीपीएए बीएमसी और एमपीपीसीबी जैसी इसकी एजेंसियां इस स्थिति के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
यह 2019 की बात है, 2024 की नहीं
उन्होंने कहा कि वाद रखें कि हम 2019 की बात कर रहे हैं और अभी 2024 है। इन वर्षों में स्थिति बद से बदतर ही हुई है। हमारा अनुमान है कि भोपाल में 2009 से 2019 के दशक में 4 लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए। साल 2015 में प्रकाशित टीवी रामचंद्रन के रिसर्च पेपर, गूगल इमेज विभिन्न सांख्यिकीय पद्धतियों जमीनी सर्वेक्षणों और अवलोकनों को शोध का आधार बनाया गया है।
सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही कठघरे में
राजधानी में बीते 20 साल में सरकारी और गैर सरकारी निर्माण के नाम पर चार लाख से अधिक पेड़ काट दिए गए। सरकारी प्रोजेक्ट के नाम पर 6 हजार से अधिक पेड़ों की बलि दी गई। अहम बात यह है कि जिन पेड़ों को काटकर लाखों रुपए खर्च कर शिफ्ट किया गया, आज वहां सिर्फ सूखे टूठ बड़े हुए है। स्मार्ट सिटी और बीआरटीएस के नाम पर सबसे ज्यादा हरियाली को नुकसान हुआ और दोनों ही प्रोजेक्ट फेल हो गए। जब शिवाजी नगर के 29 हजार पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने के लिए अफसर आमदा थे. लेकिन एक बड़े जज आंदोलन के बाद इस प्रोजेक्ट को वापस ले लिया गया।
उनके लिए यह जानना जरूरी है कि जिन पेड़ों को छोटे से बड़ा होने में 40 साल लग जाते हैं. उनको शिफ्ट करने से वह जिंदा नहीं रह पाते। इस संबंध में शहर के पर्यावरणविदों का कहना था कि शिवाजी नगर के पेड़ों को किसी हाल में वहीं काटने दिया जाएगा और न ही पेड़ों को शिफ्ट करने की बात होगी। इसके बाद ही सरकार को यह प्रोजेक्ट वापस लेना पड़ा।
करोड़ों रुपए के बराबर ऑक्सीजन का घाटा
राजधानी में 29 हजार पेड़ों को काटकर विधायक विश्राम भवन बनाए जाने थे, लेकिन इस योजना के पहले ही लोगों ने इन पेड़ों को काटने से बचा लिया। जानकारों का मानना है कि शहर के हृदय स्थल पर कटने वाले इन 29 हजार पेड़ों को बधाकर कहीं न कहीं एक साल में 500 करोड़ रुपए के बराबर ऑक्सीजन की बचत कर ली गई है। सामान्य अध्ययन में सामने आया है कि कोलकाता में 250 पेड़ काटने के एक मामले में इससे होने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अलता से एक एक्सपर्ट कमेटी का पैनल बनाया था।
इस पैनल ने फरवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट को जो रिपोर्ट सौंपी, उसके अनुसार एक हेरिटेज पेड़ वा बड़ा पेड़ (उस करीब 50 साल) प्रतिवर्ष एक लाख 74 हजार रुपए के बराबर ऑक्सीजन देता है। यदि यह पेड़ 300 साल तक रहता है तो एक करोड़ रुपए से अधिक राशि के बराबर प्राणवायु मिलती है। ऐसे में वैज्ञानिक तकों और सुप्रीम कोर्ट के आधार पर 29 हजार पेड़ों से 100 साल में करीब 29,000 करोड़ रुपए से अधिक को ऑक्सीजन वायुमंडल में कमी होने से बचा ली गई है।
सर्वे के अनुसार
पर्यावरण विशेषज्ञ सुभाष सी पांडे ने अपनी टीम के साथ अध्ययन किया था। इस सर्वे का अनुमान है कि 2009 से 2019 के बीच एक दशक में भोपाल में वर लाख पेड़ काटे गए। शहर में हरित आवरण 35 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 9 रह गया। उनसे इस रिपोर्ट के बारे में पूछा गया तो उनकी रिपोर्ट के बारे में पूरा गया तो उन्होंने कहा कि मेरे रिसर्च की बात तो दूर, अध्ययन में शामिल 13 रेफरल पॉइंट्स के गूगल मैप्स, जिन्हें अपनी रिपोर्ट के साथ संलान किया है। एक आम आदमी के लिए पर्याप्त सबूत है कि हमने कितनी बेरहमी से पेड़ों को काटा है।
225 एकड़ भूमि पर हरियाली खत्म
रिसर्च में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। गूगल इमेज की तस्वीरों से पता चलता है कि नौ स्थानों पर 225 एकड़ वाज भूमि में हरियाली लगभग नष्ट हो गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि काटे गए अधिकाल पेड़ 50 साल से अधिक पुराने थे। अन्य हिस्सों में भी कटाई 2009-2019 के दशक के दौरान शहर में कई अन्य स्थानों पर पेड़ों की कटाई हुई है. जो पेड़ों का आंकड़ा हो सकता है. जिससे दशक के दौरान काटे गए पेड़ों की कुल संख्या 4 लाख तक पहुंच गई है।
बया रेस्ट हाउस
विधायक रेस्ट हाउस बनाने के समय भी जब इसका काम शुरू हुआ था, तब 1139 पेड़ काट किए गए थे। तब से अब तक 2500 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी जा चुकी है। जो लोग हरे- भरे मध्यप्रदेश के वादे करते हैं. उन्हीं के लिए हरियाली को उजाड़ दिया गया।
पक्षियों की संख्या में 46 फीसदी की गिरावट
राजधानी में लगातार पेड़ों की कटाई व तालाबों में अतिक्रमण के चलते परियों की संख्या लगातार कम हो रही है। स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की संख्या में पिछले डेढ़ साल में 6 फीसदी गिरावट दर्ज की गाई है। अवटूचर 2023 में हुए सर्व में पक्षियों की 155 प्रजातियां पाई गई। पक्षियों की संख्या करीच 30 हजार है. जबकि 2021-22 में 200 प्रजातियों की 53325 बहर्स पाई ताई वी। इस प्रकार पक्षियों की संख्या में करीब 25 हजार की कमी आ गई है। खास बात है स्थानीय और प्रवासी दोनों तरह की पक्षियों की संख्या में गिरावट आई है।
अधोसंरचना विकास के नाम पर लाख से
अधिक पेड़ काटे में एक्सपर्ट के अनुसार, राजधानी में अधोसंरचना विकास के नाम पर कुछ सालों में लाख से अधिक पेड़ काट दिए। मोबाइल कम्युनिकेशन टावरों से फैलने वाले पर्यावरण एवं वन विभाग की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से ईको सिस्टम पर 30 से 40 फीसदी तक असर पड़ा है। पक्षियों की संख्या कम होने से मच्छर, कीड़े कम होने की जगह बढ़ने लगे हैं। इसका इंसानों पर असर होगा।