Bhopal Union Carbide Toxic Waste: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का सबसे बड़ा बोझ 40 साल बाद उतर गया है। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा गुरुवार (2 जनवरी) को पीथमपुर पहुंच गया है। कड़ी सुरक्षा के बीच कचरे से भरे 12 कंटेनर सुबह 5 बजे आशापुरा गांव स्थित रामकी एनवायरो फैक्ट्री पहुंचा। अब यहां कचरे को जलाया जाएगा। कचरा पहुंचते ही पीथमपुर छावनी बन गया है। 300 से अधिक जवान तैनात हैं।
मध्य प्रदेश के भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा पीथमपुर पहुंच गया है। यहां कचरे को जलाया जाएगा। pic.twitter.com/M6RhCK6svo
— Raju Sharma (@RajuSha98211687) January 2, 2025
जानें कैसे डिस्पोज होगा कचरा
पीथमपुर में कचरे का वजन किया जाएगा। कचरे को रखने के लिए जमीन से 25 फीट ऊपर लकड़ी का प्लेटफॉर्म बनाया है। सीपीसीबी के वैज्ञानिकों की टीम के फैसले के बाद कचरा जलाने का काम शुरू होगा। 1200 डिग्री सेल्सियस पर फर्नेस के साथ जहरीले कचरे को जलाया जाएगा। सबसे पहले 10 किलो कचरा जलाकर इसका परीक्षण किया जाएगा। जानकारों के मुताबिक, रामकी एनवायरो में 90 किमी प्रति घंटे की स्पीड से कचरे को जलाने में 5 महीने लग सकते हैं। 270 किमी प्रति घंटे की स्पीड से नष्ट करते हैं तो कचरे को खत्म करने में 51 दिन लग सकते हैं।
" घटना को 40 वर्ष हो चुके है , यूनियन कार्बाइड के कचरे को लेकर सामने आ सारी आकांशाओ का यही उत्तर है कि
— Narendra Saluja (@NarendraSaluja) January 2, 2025
भोपाल में हम सभी उसी कचरे के साथ ही 40 वर्ष से रहते आये है...
वैज्ञानिको के मुताबिक भी सेविन नेपथोल का जहरीलापन 25 साल में खत्म हो जाता है...." - मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव… pic.twitter.com/d0UFplfTrC
पीथमपुर में जहरीले कचरे को जलाने का एकमात्र प्लांट
बता दें कि एमपी में औद्योगिक इकाइयों में निकलने वाले रासायनिक और अन्य अपशिष्ट के निष्पादन के लिए धार के पीथमपुर में एकमात्र प्लांट है। यहां कचरे को जलाने काम किया जाता है। यह प्लांट सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा-निर्देशानुसार संचालित है।
20 साल चली कानूनी लड़ाई
भोपाल के आलोक प्रताप सिंह ने अगस्त 2004 में MP हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े जहरीले कचरे को हटाने की गुहार लगाई। साथ ही पर्यावरण को हुए नुकसान के निवारण की मांग भी की। हाई कोर्ट ने दिसंबर 2024 में जहरीले कचरे के निपटान में हो रही देरी पर फटकार लगाते हुए कहा कि एक महीने के भीतर यूका से कचरा हटाया जाए। इसके बाद कवायद तेज हुई। 20 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भोपाल से ये जहरीला कचरा हटाया गया।
भोपाल से कैसे हटा कचरा
हाईकोर्ट ने 6 जनवरी तक इस जहरीले कचरे को हटाने के निर्देश दिए थे। कोर्ट के निर्देश के बाद कचरे की शिफ्टिंग की प्रक्रिया रविवार से शुरू हुई थी। 4 दिन बैग्स में 337 मीट्रिक टन कचरा पैक किया गया। मंगलवार रात से इसे कंटेनर्स में लोड करना शुरू किया। बुधवार दोपहर तक प्रोसेस पूरी कर ली गई और रात में इसे पीथमपुर रवाना किया गया। सरकार शुक्रवार यानी 3 जनवरी को हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करेगी।
पीथमपुर बचाओ समिति दिल्ली में देगी धरना
कचरे जलाने को लेकर इंदौर और पीथमपुर में विरोध हो रहा है। गुरुवार को स्थानीय रहवासी विरोध में रैली निकालेंगे। शुक्रवार को पीथमपुर बंद का आह्वान किया है। पीथमपुर बचाओ समिति शुक्रवार को दिल्ली में धरना देगी। पूर्व मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर और विधायक नीना वर्मा मुख्यमंत्री मोहन यादव से मिलकर सरकार द्वारा इस मामले में रिव्यू पिटीशन दायर करने को मांग करेंगे।
कंटेनरों के आगे-पीछे थीं पुलिस की गाड़ियां
भोपाल से बुधवार रात 9 बजे कचरे से भरे 12 कंटेनर हाई सिक्योरिटी के बीच पीथमपुर के लिए रवाना हुए। कंटेनर्स के आगे पुलिस की 5 गाड़ियां थीं। 100 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे।रास्ते में कई जगह जाम लगा। कंटेनर्स के साथ पुलिस सुरक्षा बल, एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पॉन्स टीम मौजूद रही। हर कंटेनर में दो ड्राइवर थे। भोपाल, सीहोर, इंदौर, देवास और धार जिलों से गुजरते हुए 250 किमी का सफर 8 घंटे में तय कर सुबह 5 बजे सभी कंटेनर पीथमपुर पहुंचे।
गैस त्रासदी: कैसे हुई थी गैस लीक
यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की स्थापना 1934 में भोपाल में की गई थी। कंपनी में यूनियन कार्बाइड और कार्बन कॉर्पोरेशन की 50.9 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। 2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के एक टैंक में स्टोर की गई एमआईसी गैस लीक हो गई थी। हवा के साथ गैस फैलकर आसपास के इलाकों में घुलने लगी। धीरे-धीरे गैस भोपाल शहर के बड़े हिस्से में फैल गई। लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी। त्रासदी में 5479 लोगों की मौत हुई थी। 5.74 लाख लोग प्रभावित हुए थे। हादसे के समय यहां लगभग 9,000 लोग काम कर रहे थे।