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MP Government: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी इमेज भैया और मामा की बनाई थी। भाजपा को इसका लाभ मिला। विधानसभा चुनाव में बंपर बहुमत मिला। इसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी 29 सीटें जीत कर क्लीन स्वीप किया।

दिनेश निगम ‘त्यागी’
राज- काज 
- रक्षाबंधन का त्यौहार रक्षाबंधन के बाद जन्माष्टमी तक मनाया जाता है। बहनें भाईयों को पूरे आठ दिन तक राखी बांधती हैं। भाई उपहार देकर उनकी सुरक्षा का संकल्प लेते हैं। इस परंपरा से अलग हट कर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने समय से पहले रक्षाबंधन का पर्व मनाना शुरू कर दिया है। वजह है, प्रदेश की लाड़ली बहनों को जोड़कर रखना। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी इमेज भैया और मामा की बनाई थी। भाजपा को इसका लाभ मिला। विधानसभा चुनाव में बंपर बहुमत मिला। इसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी 29 सीटें जीत कर क्लीन स्वीप किया।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा भी कि वे ‘लाड़ली बहना योजना’ के कारण चुनाव हारे। मुख्यमंत्री डॉ यादव क्यों पीछे रहते। उन्होंने भी ‘लाड़लियों का लाड़ला’ बनने अभियान छेड़ दिया। राखी स्पेशल के तौर पर मिठाई और राखी के लिए ढाई सौ रुपए देने का फैसला लिया। लाड़लियों को 450 रुपए में गैस सिलेंडर देने का निर्णय हुआ। अब मुख्यमंत्री प्रदेश का दौरा कर रक्षाबंधन और श्रावण उत्सव कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। राखियां बंधवा कर उपहार दे रहे हैं। लाड़लियों को झूला झुलाकर आशीर्वाद दे रहे हैं। साथ में रक्षाबंधन से जुड़े गाने चल रहे हैं। चित्रकूट में मुख्यमंत्री डॉ यादव ने खुद लाड़ली बहनों के लिए गाना गाया। सवाल है कि क्या डॉ यादव भी शिवराज की तरह लाड़लियों के लाड़ले बन पाएंगे?

महज एक ‘मुस्लिम लीडर’ नहीं थे आरिफ अकील....
- राजधानी में कांग्रेस के एक बड़े नेता आरिफ अकील का निधन हाे गया। निधन के बाद से ही उन्हें एक बड़ा ‘मुस्लिम लीडर’ कहा जा रहा है। माफ करिए, लेकिन यह सच नहीं। आरिफ सिर्फ मुस्लिम लीडर नहीं, बल्िक जनता के लोकप्रिय लीडर थे। वे 6 बार विधायक बने तो सिर्फ मुस्लिम मतों के कारण नहीं, उनकी जीत में हमेशा हिंदू मतदाताओं की भी मुख्य भूमिका रही। वजह, आरिफ काम-काज में कभी  हिंदू-मुस्लिम नहीं देखते थे। वे कहते थे कि जो मेरे पास आ गया, वह मेरा है। घर आने वाले को वे कभी निराश नहीं करते थे। इसलिए आरिफ अकील को सिर्फ ‘मुस्लिम लीडर’ कहना उनके साथ नाइंसाफी है।

2003 के चुनाव में भाजपा से कट्टर हिंदू नेता रामेश्वर शर्मा मैदान में थे और समाजवादी के टिकट पर मुस्लिम चेहरा आरिफ मसूद। मसूद 11 हजार से ज्यादा वोट ले गए फिर भी अकील लगभग 8 हजार वोटाें के अंतर से चुनाव जीते। उनकी जीत के पीछे हिंदू मतदाता थे। 2023 में आरिफ के भाई आमिर अकील ही बगावत कर चुनाव लड़ गए, फिर भी अकील ने अपने बेटे आतिफ को सम्मानजनक जीत दिला दी। बीमारी की वजह से कांग्रेस ने उनके बेटे को टिकट दिया था। अकील को हराने के लिए भाजपा ने हर बार नए चेहरे आजमाए लेकिन सफलता नहीं मिली। राजनीति में आरिफ भोपाल की पहचान थे।

ऐसा कर कांग्रेस ने खुद कराई अपनी फजीहत....
- कांग्रेस राजनीितक शिष्टाचार को इस तरह तिलांजलि देगी, इसकी उम्मीद नहीं थी। इंदौर शहर और ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्षों सुरजीत सिंह चड्डा और सदाशिव यादव को निलंबित कर पार्टी ने खुद ही अपनी फजीहत करा ली। इनका दोष यह था कि कांग्रेस कार्यालय पहुंचने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय का स्वागत कर दिया था। इंदौर पौधरोपण में गनीज बुक में नाम दर्ज करा रहा था। विजयवर्गीय इसमें कांग्रेस की भी सहभागिता चाहते थे और कांग्रेस को पौधरोपण का टारगेट देकर आए थे। ऐसे कामों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने गजब ही कर दिया। नोटिस जारी कर जवाब का इंतजार किए बगैर ही दोनों को निलंबित कर दिया।

ऐसा उस कांग्रेस ने किया जिसके तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में आए नेताओं को सीएम हाउस में बुलाकर भोजन कराते थे। भाजपा- कांग्रेस नेताओं के एक-दूसरे के घर और कार्यालय पहुंचने के उदाहरण भरे पड़े हैं। कांग्रेस की केंद्र सरकार अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता को सरकार का प्रतिनिधि बना कर विदेश भेज देती थीं। वैसे भी सामान्य शिष्टाचार में कोई विराेधी आपके घर आ जाए तो क्या करेंगे? इसका जवाब हर आम आदमी दे सकता है  लेकिन कांग्रेस इतनी नासमझ कैसे हो गई, समझ से परे है।

खुद मजाक के पात्र बन रहे कांग्रेस के भंवर जितेंद्र....
- कांग्रेस के मध्यप्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र की गिनती राहुल कैम्प के खास नेताओं में हाेती है। प्रदेश कांग्रेस का प्रभार मिला तो पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच उनकी अलग धमक थी। पर जैसे-जैसे समय गुजर रहा, वे अपनी साख और भरोसा दोनों खो रहे हैं। मजाक के पात्र भी बन रहे हैं। वजह हैं, उनके द्वारा की जाने वाली घोषणाएं, जो कभी पूरी नहीं होतीं। प्रदेश की नई कार्यकारिणी गठन को लेकर वे तीन बार तिथियों का एलान कर चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर, वही ‘ढाक के तीन पात’ वाला। भोपाल की पिछली बैठक के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि दो हफ्ते में नई कार्यकारिणी गठित हो जाएगी, यह अवधि भी कब की गुजर गई।

जितेंद्र ने प्रभारी बनने के बाद अपने पहले दौरे में ही प्रदेश कार्यकारिणी को भंग करने की घोषणा कर दी थी। तब से प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी एक-दो पदािधकािरयों के बूते काम चला रहे हैं। कुछ पूर्व पदािधकारी नियमित प्रदेश कार्यालय में बैठते हैं लेकिन उनके पास कोई काम नहीं है। संगठन से जुड़ी बैठकों में भी उन्हें नहीं बुलाया जाता, जबकि जो पार्टी कार्यालय में नियमित बैठ कर समय दे रहे हैं, उनका उपयोग किया जाना चाहिए। पता नहीं, प्रदेश कांग्रेस करना क्या चाह रही है। संगठन है नहीं और उसकी मजबूती के कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। बिना टीम यह कैसे होगा, ऊपर वाला जाने।

‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की तर्ज पर सिर फुटौव्वल....
- ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ कहावत काे चरितार्थ करते हुए बुंदेलखंड में सागर के भाजपा नेता जमीन प्रेम में उलझ गए हैं। वजह है जमीन की बढ़ती कीमत और इससे होने वाली कमाई। थमने की बजाय विवाद बढ़ते जा रहे हैं, जिनकी गूंज राजधानी भोपाल तक पहुंच गई है। इस ‘सिर फुटौव्वल’ विवाद में पिस रही है जनता और परेशान हैं भाजपा कार्यकर्ता। सागर का बस स्टैंड शहर से 6 किलोमीटर दूर पहुंच गया है। बस ऑपरेटर और शहर की जनता इसका लगातार विरोध कर रही है, लेकिन भाजपा के नेता जनता के साथ नहीं हैं। जहां बस स्टैंड गया, वहां नेताओं की जमीन है।

जमीन की कीमत इतनी बढ़ गई है कि संबंधित भाजपा नेता किसी भी हालत में बस स्टैंड वापस नहीं आने देना चाहते। बस स्टैंड से लगी जमीन पर कब्जे को लेकर नेताओं में विवाद शुरू हो गए हैं। महापौर पति सुशील तिवारी का आरोप है कि गोविंद राजपूत ने उनकी जमीन की नपाई करवा कर फेंसिंग करा दी है। सुशील कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। एक अन्य जमीन को लेकर विधायक शैलेंद्र जैन और सुशील तिवारी के बीच पहले से विवाद है। विवाद इतना बढ़ा कि शैलेंद्र जैन सागर शहर के 30 पार्षदों को लेकर भोपाल आए और नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से मुलाकात की। शैलेंद्र के साथ एक मंत्री भी थे। नेताओं की इस सिर फुटौव्वल पर प्रदेश की नजर है।
- दिनेश निगम ‘त्यागी’ (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)

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