आशीष नामदेव, भोपाल। पूंजीवाद अफसरशाही को अपने वश में करके, जनता में अंधविश्वास की धुंध फैलाते हुए सत्ता पर आसानी से काबिज हो जाता है, नाटक को सर्वकालिक ठहराता है, धन्नासेठ का बेटा मन्ना सेठ कई सारे ऐसे कार्य करता है, जिससे कि उसे सजा हो और बहुत प्रयासों के बाद भी उसकी हर तरकीब नाकामयाब साबित होती है। अंत में उसके साथ वही होता है जो राम रचि राखा। यह कहानी है नाटक “होइ है वही जो राम रचि राखा“ की, जिसके मूलत मृणाल पांडेय द्वारा लिखा गया है, जिसका बघेली रूपांतरण योगेश त्रिपाठी ने किया है।
लोक बोली नाट्य समारोह 2024 का समापन
इस नाटक का मंचन रविवार को भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली के सहयोग से रंग त्रिवेणी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति, भोपाल द्वारा शहीद भवन में चल रहे चार दिवसीय लोक बोली नाट्य समारोह 2024 के समापन पर हुआ। समापन समारोह में नाटक ‘होई है वही जो राम रचि राखा’ लेखक योगेश त्रिपाठी, निर्देशक आनंद मिश्रा तथा प्रस्तुति : सघन सोसायटी फॉर कल्चरल एवं वेलफेयर, भोपाल ने दी।
स्त्री भी अपने जीवन को अपनी इच्छा और अपनी शर्तों पर चाहती है जीना
नाटक ‘लाल पान की बेगम’ कहानी का मूल आलेख फणीश्वर नाथ रेणु ने किया है, जिसका बघेली नाट्य रूपांतरण सुनील कुमार रावत ने किया है और इसकी प्रस्तुति रंगदूत, सीधी ने दी। यह कहानी एक ग्रामीण अंचल की है, जिसमें एक संपन्न परिवार है। जहां एक पुत्र बिरजू उसके पिता उसकी बहन चंपिया एवं उसकी मां (लाल पान की बेगम ) मुख्य रूप से अपने किरदार को निभाते हुए नाटक का मंचन करते है।
इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि एक स्त्री भी अपने जीवन को अपने इच्छा और अपनी शर्तों पर जीना चाहती है। स्त्री भी आत्मसम्मान चाहती है। ऐसी कोई भी कुप्रथा या कुरीति स्त्री को स्वीकार्य नहीं है जो उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए या उसे दोयम दर्जे का करार दे। जिस कारण उसे लाल पान की बेगम के नाम से कहा गया है।