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Bhopal News: भोपाल के जेपी और हमीदिया अस्पताल में हर रोज वायरल के 40 से 50 मरीज सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों का तर्क है कि इस बार फ्लू का जिस तरह का ट्रेंड दिख रहा है, वह सामान्य नहीं है।

Bhopal News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में इस साल वायरल बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। सामान्य रूप से दो से तीन दिन में ठीक होने वाला वायरल फीवर इस बार आठ से दस दिन में ठीक हो रहा है। यही नहीं, चिकित्सकों की मानें तो इस बार वायरस का प्रभाव बोन मैरो तक हो रहा है। अस्पतालों में वायरल के जो मरीज आ रहे हैं, उन्हें सर्दी- खांस और बुखारके साथ हड्डी व जोड़ों के दर्द की भी समस्याएं हैं।

जेपी और हमीदिया अस्पताल में हर रोज वायरल के 40 से 50 मरीज सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों का तर्क है कि इस बार फ्लू का जिस तरह का ट्रेंड दिख रहा है, वह सामान्य नहीं है। इसकी वजह नए टाइप के वायरस का हमला हो सकता है। कॉमन फ्लू के नेचर में आए इस बदलाव की वजह क्या है, यह जानने के लिए मेडिकल कॉलेजों में रिसर्च होती रहती है।

वायरस के कैरेक्टर में बदलाव
जेपी अस्पताल के एमडी मेडिसिन डॉ. योगेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि लगातार अंतराल में फ्लू का ऐसा असर देखा जाता है. लेकिन हर बार इसके वायरस वार रूप में सामने आते हैं। इसकी दो बड़ी वजह सामने आई। मरीज का देरी से अस्पताल पहुंचना और वायरस के कैरेक्टर में बदलाव।

रीढ़ की हड्डी में असर
डॉ आदर्श वाजपेयी के मुताबिक इस बार वायरल के साथ हड्डी के दर्द खासकर कमर और पीठ के वर्ष के मरीज ज्यादा आ रहे है। इनका बुखार को 7 से 10 में ठीक हो जाता है. लेकिन दर्द 15 से 20 दिन तक परेशान कर रहा है।

पहले आंख में था असर
आंखों के डॉ. केके अधवाल ने बताया कि पिछली बार वायरस का असर आंखों पर ज्यादा था। बीते साल आई फ्लू के मरीज भी 7 से 10 दिन में ठीक हो रहे थे। हो सकता है उसी वायरस ने अपना रूप बदल लिया हो।

हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ सुनीत टंडन ने बताया कि वायरस का कैरेक्टर बदला होगा वायरल के ज्यादा खतरनाक होने की पहली वजह हो सकती है वायरस का कैरेक्टर बदला हो। वायरस लगातार अपना कैरेक्टर बदलता रहता है. जिससे उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं होने से वह खतरनाक हो जाता है।

स्थिति नियंत्रण में
जेपी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि मरीजों को देखने पर यह साफ लग रहा है कि वायर ने स्वरूप बदल लिया है, लेकिन अभी स्थिति नियंत्रण में है। पहले मरीज कम गंभीर हो रहे थे।  

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