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मध्यप्रदेश के किसान नीलगायों के आतंक से परेशान हैं। मंदसौर, धार, नीमच, पन्ना समेत 35 जिलों में नीलगायों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। आबादी को नियंत्रित करने के नाम पर वन विभाग ने करोड़ों फूंक दिए लेकिन सारी योजनाएं असफल साबित हुईं।

भोपाल। मध्यप्रदेश में नीलगायों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। नीलगाय के आतंक से किसानों की फसलें चौपट हो रही हैं। पिछले 10 साल में नीलगाय की आबादी को नियंत्रित के नाम पर वन विभाग ने कई तरह की योजनाओं पर काम किया। लेकिन आबादी पर नियंत्रण नहीं हो पाया। नौबत यहां तक आ पड़ी कि धार एसडीएम को बीते दिनों नीलगायों को गोली मारने की अनुमति देनी पड़ी है। अब किसान भले ही इस अनुमति को नीलगायों से छूटकारा दिलाने वाली मान रहे हों लेकिन असल में इससे आम लोगों को खतरा भी हो सकता है।

मंदसौर में नीलगायों को हेलिकाप्टर से हांककर रेस्क्यू वाहन तक लाने के लिए कोशिश की गई लेकिन यह योजना भी सफल नहीं हो पाई। किसान परेशान हैं कि आखिर कब नीलगायों के आतंक से उन्हें छुटकारा मिलेगा। बता दें कि मंदसौर, धार नीमच, पन्ना समेत 35 जिलों में नीलगायों की संख्या सबसे ज्यादा है। 

कई योजनाएं लेकर आए लेकिन सब बेअसर 
जानकारी के मुताबिक, बोमा पद्धति से नीलगायों को पकड़ने और उन्हें दूसरे स्थानों पर छोड़ने की योजना पर भी काफी पैसा खर्च किया गया, लेकिन परिणाम शून्य रहे। असल में इस योजना को जमीन पर लाने के लिए अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया। इसके लिए संसाधन जुटाए गए। रुपये खर्च हुए। लेकिन योजना सफल नहीं हुई। जब अधिकारी बोमा पद्धति से नीलगायों की आबादी को नियंत्रित नहीं कर पाए तो बोमा पद्धति का विचार लाया। इस पर काम शुरू हुआ, प्रयोग भी किया लेकिन यह भी फेल हो गया। बधियाकरण पर भी सवाल खड़े हो रहे थे।

बोमा पद्धति: शोर मचाकर वन्यजीवों का करते हैं रेस्क्यू 
बोमा पद्धति शाकाहारी वन्यप्राणियों को पकड़ने के लिए उपयोग में लाई जाती है। अलग-अलग दिशाओं से एक तय दिशा में वन्यप्राणियों को शोर करके खदेड़ा जाता है, ताकि वन्यप्राणी चिन्हित दिशा की ओर पहुंच सके। पहले से रेस्क्यू वाहन खड़े होते। इन वाहन के काफी पहले से झाड़ियों और बांस से बनी तख्तियां लगा दी जाती हैं। शोर से बचने के चलते वन्यप्राणी इन तख्तियों के बीच से होते हुए सीधे वाहनों में प्रवेश करते हैं, जिन्हें गेट बंद करके दूसरे स्थानों पर छोड़ते हैं।

अफ्रीका के वन्यप्राणी विशेषज्ञों से ले रहे सलाह 
कुछ माह पहले कान्हा टाइगर रिजर्व में अंतराराष्ट्रीय कार्यशाला हुई थी। कार्यशाला में नीलगायों की आबादी से निपटने को लेकर बातचीत की गई थी। दक्षिण अफ्रीका के वन्यप्राणी विशेषज्ञों का दल भी शामिल था। दक्षिण अफ्रीका में बोमा पद्धति बहुत कारगर है इसलिए वहां के विशेषज्ञों से चर्चा चल रही है। जल्द ही नतीजे पर पहुंचेंगे।

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