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Sinhastha Mela Act-1955: मप्र सरकार सिंहस्थ अधिनियम- 1955 में बदलाव करने जा रही है। इसमें 17 की जगह 40 धाराएं होंगी। इसके तहत सिंहस्थ मेला क्षेत्र में भूमि प्रबंधन, आवंटन, मेला शुल्क, सुरक्षा, आवागमन से लेकर सभी सुविधाएं दी जाती है।

Sinhastha Mela Act-1955: मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार सिंहस्थ अधिनियम-1955 में बदलाव की तैयारी कर रही है। इसमें अब 17 की जगह 40 धाराएं होंगी। इस अधिनियम के तहत सिंहस्थ मेले में भूमि प्रबंधन, आवंटन, मेला शुल्क, सुरक्षा, आवागमन से लेकर सभी सुविधाएं दी जाती है। अधिनियम में बदलाव की मुख्य वजह पिछले 70 सालों में सिंहस्थ के स्वरूप में हुए बदलाव को माना जा रहा है।

12 वर्ष में सिंहस्थ का आयोजन
बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में हर 12वें वर्ष सिंहस्थ मेला लगता है। जिसमें करोड़ों श्रद्धालु क्षिप्रा स्नान व बाबा महाकाल के दर्शन को पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के बावजूद अधिनियम में कोई बदलाव नहीं हुआ था। सात दशक में सिंहस्थ महाकुंभ का स्वरूप और आयोजन काफी बदल चुका है। 1950 के दशक में यह आयोजन साधारण और पारंपरिक तरीकों से किया जाता था, जिसमें सीमित संख्या में श्रद्धालु आते थे। परंतु समय के साथ-साथ इसमें काफी बदलाव हुए। इस मेले का आयोजन ज्योतिषीय गणना के अनुसार, सिंह राशि में गुरु के प्रवेश पर किया जाता है। इसे पवित्र नदी क्षिप्रा के तट पर आयोजित किया जाता है। इसे चार प्रमुख कुंभ मेलों में से एक माना जाता है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त नियम लागू होंगे
सिंहस्थ अधिनियम 1955 में यह होगा बदलाव सरकार ने वर्तमान समय की जरूरतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मध्य भारत सिंहस्थ मेला एक्ट-1955 में संशोधन करने का निर्णय लिया है। यह संशोधन संभावित है। मेले में यातायात प्रबंधन, स्वच्छता, सुरक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक बनाया जाएगा। क्षिप्रा नदी और मेले के आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त नियम लागू होंगे। आर्थिक प्रबंधन के तौर पर सिंहस्थ में फंडिंग, खर्च और राजस्व की पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जाएगा। यह भी होगा कि इस मेला क्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए।

ड्राफ्ट तैयार कर आम लोगों से सुझाव
सरकार के मुताबिक, अभी मेला क्षेत्र करीब 3 हजार हेक्टेयर का है। पिछली बार इसमें से करीब 23 फीसदी क्षेत्र खाली रह गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि वर्ष 2040 तक में यह क्षेत्र भर जाएगा। मेला क्षेत्र में आने वाले वाहनों, दुकानों आदि से एक निश्चित शुल्क लिया जाएगा। अभी अधिनियम का ड्राफ्ट तैयार कर आम लोगों से सुझाव लिए जाएंगे। इस सुझाव के आधार पर एक्ट तैयार कर उसे संभवतः दिसंबर में होने वाले विधानसभा सत्र में पारित कराया जाएगा।

अधिनियम में बदलाव की एक बड़ी वजह भीड़ में खासा वृद्धि हो चुकी है। पहले जहां लाखों श्रद्धालु आते थे वहीं अब करोड़ों श्रद्धालु इस आयोजन में भाठा लेते हैं। आधुनिक यातायात व्यवस्था, संचार, चिकित्सा और स्वच्छता सुविधाओं का विस्तार हुआ है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अस्थाई अस्पताल, पुलिस नियंत्रण कक्ष और स्वच्छता अभियान चलाए जाते हैं। सिंहस्थ का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाता है, जिससे देश-विदेश से मी श्रद्धालु आते हैं। डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी जानकारी व्यापक रूप से फैलाई जाती है।

1955 के एक्ट में यह था प्रावधान
मप्र के गठन से पहले सिंहस्य को सकुशल कराने मध्य भारत सिंहस्थ मेला अधिनियम-1955 बना था। इतने सालों से इसी अधिनियम के आधार पर मेले का संचालन हो रहा है। उस वक्त सिंहस्थ मेले में कम संख्या में श्रद्धालु आते थे। समय के अनुसार, अधिनियम में साइकिल, तांगा से लेकर बर्फ के गोले की बिक्री आदि पर मेला शुल्क लगाया जाता था। अब यह पूरी। तरह से अप्रासंगिक हो चुका है, लेकिन शुल्क के जरिए प्रबंधन पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है। सरकार चाहती है कि इस अधिनियम में बदलाव कर मौजूदा समय के हिसाब से प्रबंधन हो।

कैबिनेट में रखेंगे प्रस्ताव
इस संबंध में विभाग के प्रमुख सचिव ने जानकारी दी कि अभी 70 साल पुराने एक्ट के अनुसार प्रबंधन होता है। अब यह अप्रासंगिक हो चुका है. इसलिए एक्ट का नया ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। इस पर सुझाव आमंत्रित किया जाएगा। इसके बाद कैबिनेट में प्रस्ताव पास करा कर विधानसभा में रखा जायेगा।

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