Satna Lok Sabha Election: मध्य प्रदेश की सतना लोकसभा सीट में 10 बाद फिर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा ने चार बार के सांसद गणेश सिंह, कांग्रेस ने दो बार के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा और बसपा ने चार बार के विधायक नारायण त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है। तीनों की साख दांव पर है। सतना में वैसे तो 19 प्रत्याशी हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच है। नारायण के पक्ष में लामबंद हुए ब्राह्मण मतदाता लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहे हैं, लेकिन बिखराव ज्यादा दिख रहा है।
सतना में पिछले 8 चुनावों पार्टीवार मिले मत
चुनाव वर्ष | भाजपा | कांग्रेस | बसपा |
2019 | गणेश सिंह 588753 | राजाराम 357280 | अच्छेलाल 109961 |
2014 | गणेश सिंह 375288 | अजय सिंह 366600 | धर्मेंद्र तिवारी 124602 |
2009 | गणेश सिंह 194624 | सुधीर सिंह 90806 | सुखलाल 190206 |
2004 | गणेश सिंह 239706 | राजेंद्र सिंह 156116 | नरेंद्र सिंह 78687 |
1999 | रामानंद 217932 | राजेंद्र सिंह 214527 | सुखलाल 156354 |
1998 | रामानंद 263011 | राजेंद्र सिंह 218526 | सुखलाल 178535 |
1996 | सखलेचा 160259 | तोषण सिंह 85751 | सुखलाल 182497 |
1991 | सुखेंद्र सिंह 139654 | अर्जुन सिंह 205905 | सुखलाल 29519 |
सतना लोकसभा सीट में साढ़े 17 लाख से ज्यादा मतदाता है। इनमें सर्वाधिक करीब 8 लाख वोटर ओबीसी समुदाय से आते हैं। यही कारण है भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं। जो आपस में बंटते दिख रहे हैं। ऐसे में 7 लाख से ज्यादा दलित आदिवासी और सवर्ण वोटर निर्णायक भूमिका निभाएंगे। इनका काफी हिस्सा भाजपा के साथ है, लेकिन यदि नारायण त्रिपाठी बसपा के आधार वोट और ब्राह्मण समाज को एकजुट करने में सफल रहे तो बाजी पलट सकते हैं। सतना में साढ़े तीन लाख आसपास ब्राह्मण समाज का वोट है।
सतना लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
- सतना लोकसभा सीट में कांग्रेस 33 साल से राजनीतिक वनवास झेल रही है। 1991 में कांग्रेस से आखिरी चुनाव यहां अर्जुन सिंह ने जीत दर्ज की थी। 1996 में अर्जुन सिंह ने बगावत कर तिवारी कांग्रेस के सिम्बल पर उतरे। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री बीरेंद्र सखलेचा और कांग्रेस ने पूर्व विधायक तोषण सिंह को प्रत्याशी बनाया, लेकिन सभी हार गए।
- 1996 के चुनाव में बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने 28 फीसदी वोटों के साथ जीत दर्ज की थी। 24 फीसदी वोटों के साथ वीरेंद्र सखलेचा दूसरे नंबर पर रहे। अर्जुन सिंह 19 फीसदी और कांग्रेस के तोषण सिंह को 13 फीसदी वोट मिले थे। इस चुनाव में कुल 71 उम्मीदवार थे। इनमें से 48 प्रत्याशी निर्दलीय उतारे गए, जो अब तक का रिकॉर्ड है।
- 1996 के बाद सतना लोकभा सीट भाजपा के कब्जे में है। 1998 और 1999 में पूर्व मंत्री रामनंद सिंह ने जीत दर्ज की। जबकि, 2003, 2009, 2014 और 2019 में गणेश सिंह सांसद निर्वाचित हुए। इन चुनावों में कांग्रेस और बसपा लगातार प्रत्याशी बदलती रहीं, लेकिन जीत नहीं मिली।
- 2009 और 2014 के चुनाव सतना लोकसभा सीट में काफी रोचक हुए थे, लेकिन जीत का सेहरा किस्मत के धनी गणेश सिंह के सिर पर ही बंधा। 2009 में बसपा के सुखलाल कुशवाहा चार हजार और 2014 के चुनाव में कांग्रेस के अजय सिंह राहुल 8 हजार वोटों से हारे थे।
- 2019 में कांग्रेस ने राजाराम त्रिपाठी और BSP ने अच्छेलाल कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया, लेकिन दोनों बुरी तरह हारे। गणेश सिंह इस चुनाव में 52 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर राजाराम त्रिपाठी को ढाई लाख से ज्यादा वोटों से हराया था।
- 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व सांसद सुखलाल के बेटे व सतना विधायक सिद्धार्थ को प्रत्याशी बनाया है। जो चार बार के सांसद गणेश सिंह को कड़ी टक्कर दे रहे हैं, लेकिन राजाराम त्रिपाठी और सुधीर सिंह तोमर सहित कांग्रेस के 50 से ज्यादा बड़े नेताओं ने भाजपा ज्वाइन कर ली। वहीं मैहर के पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी बसपा की टिकट पर उतर गए। इन सबके बावजूद सतना में लोकसभा की लड़ाई रोचक बनी हुई है।
तीन उम्मीदवारों के पास बड़ा आधार वोट
सतना लोकसभा सीट में इस बार तीनों प्रमुख पार्टियों ने जनाधार वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। गणेश सिंह के साथ भाजपा के अलावा डेढ़ लाख से ज्यादा कुर्मी वोट, सिद्धार्थ के पास कांग्रेस के अलावा कुशवाहा वोट और नारायण त्रिपाठी के पास बसपा के मूल वोट के साथ ब्राह्मण समाज का बड़ा हिस्सा साथ है। यूं कहें तीनों उम्मीदवारों के पास डेढ़ से दो लाख थोक वोट बैंक है। स्विंग मतदाताओं को जो जितना साध लेगा, उसके जीत की राह उतनी ही आसान हो जाएगी।
दिग्गजों को साख बचाने की चुनौती
- गणेश सिंह: 20 साल की एंटी इंकम्बेंसी
सतना विधानसभा चुनाव में पराजय से साफ है कि भाजपा के गणेश सिंह से लोग खुश नहीं हैं। हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनके लिए मोर्चा संभाले हुए है। मोदी लहर का भरोसा है, लेकिन लोगों की नाराजगी और 20 साल की एंटी इंकम्बेंसी को साधना बड़ी चुनौती है। - सिद्धार्थ: भारी पड़ सकती है अपनों की बगावत
सिद्धार्थ कुशवाहा की चुनौती भी कम नहीं हैं। 5 साल में वह चौथा चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसमा के दोनों चुनाव जीत लिए, लेकिन मेयर चुनाव इसी तरह की बगावत के चलते हारे थे। पार्टी के लोग इस बात से नाराज हैं कि हर चुनाव में उन्हें ही मौका दिया जाता है। - नारायण: दलबदल के बीच कम हुआ भरोसा
बसपा के नारायण त्रिपाठी दलबदल का रिकॉर्ड बना चुके हैं। सपा, बसपा भाजपा, कांग्रेस और विंध्य जनता पार्टी यानी कोई दल नहीं बचा, जिससे उन्होंने चुनाव न लड़ा हो। संघर्षशील हैं, जनहित के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहते हैं, लेकिन लगातार पाला बदलने से जनता उन पर भरोसा नहीं कर पा रही।