आशीष नामदेव, भोपाल। नृत्य के माध्यम से शरीर और मन का समागम होता है। हर सुंदर कला तप के फलस्वरूप ही जन्म लेती है और कलाकार तो केवल कला को प्रदर्शित करता है। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि कला तो पूर्व से ही कलाकार में विद्यमान होती है। यह बात विश्व प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्म विभूषण डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने कही। डॉ. सुब्रमण्यम भारत भवन में सोमवार से शुरू हुए नृत्य में अद्वैत कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थीं। इस दौरान डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने शास्त्रीय नृत्य में अद्वैत के विभिन्न सिद्धांतों और स्वरूपों की विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम का आयोजन आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मप्र पर्यटन निगम और संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। इस दौरान डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने प्रैक्टिकल सेशन ऑफ डांस ऑन रस एंड सात्विक अभिनय पर चर्चा करते हुए कहा कि जहां हाथ होते हैं, वहीं दृष्टि होती हैं, जहां दृष्टि होती हैं वहां मन होता है, जहां मन होता है वहां भाव होता है और जहां भाव होता हैं वहीं रस प्राप्त होगा। इस दौरान स्वामिनी विमलानंद सरस्वती ने विवेक चूड़ामणि का संक्षिप्त परिचय कराते हुए नृत्य में नमस्कार के भावों के महत्व को विस्तार दिया।
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आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के तरीके सिखाता है नृत्य
इसी सत्र में पद्मा सुब्रमण्यम की दो शिष्याओं ने विवेक चूडामणि के प्रथम श्लोक सर्व वेदांत सिद्धांत... को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। जिसकी व्याख्या स्वामिनी विमलानंद ने की। उन्होंने कहा कि इस पाठ की शुरुआत गोविंदा को नमस्कार के साथ शुरू होता है, जिसकी व्याख्या या तो भगवान या उनके गुरु गोविंद भागवत पद के संदर्भ में की जा सकती है।
ओडिसी के भावों को किया प्रदर्शित, भजनों से महौल किया भक्तिमय
शाम को नृत्य में अद्वैत के सन्दर्भ में मोक्ष की अवधारणा पर आयोजित सत्र में डॉ. शुभदा बाराड़कर ने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ओडिसी नृत्य में मोक्ष की अवधारणा पहले से है जैसे हम अनुभव करते हैं। इस दौरान उन्होंने ओडिसी नृत्य में मोक्ष के भावों को सजीव ढंग से मंच पर प्रदर्शित किया। इसके उपरांत शंकर दूतों द्वारा मंगलाचरण, पुष्पांजलि और निर्वाणषट्कम् की प्रस्तुति दी गई। पुलेकर के भजनों ने किया मुग्ध शाम को प्रसिद्ध गायक हर्षल पुलेकर की सांगीतिक प्रस्तुति हुई। इस दौरान हर्षल ने हरि सुन्दर नंद मुकुंदा..., हरि नारायण हरि ओम..., अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं..., राम नारायणं जानकी बल्लभम... जैसे भजनों को पेश किया। प्रस्तुति के क्रम को आगे बढ़ाते हुए हर्षल ने जय जय राधा रमण हरी बोल..., जय जय राधा रमण हरि बोल... जैसे गीतों को प्रस्तुत किया।