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What is Kutki (Kodo): कुटकी (कोदो) कम बारिश में पैदा होने वाली फसल है। इसे 'अकाल का अनाज' या 'गरीब का चावल' भी कहते हैं। 40 साल पहले इसकी खेती जमकर होती थी। अब विलुप्त होने के कगार पर है। जानें खेतों से ये फसल क्यों सीमित हो रही है?

What is Kutki (Kodo): कुटकी (कोदो) एक तरह की फसल है। कोदो यानी कुटकी कम बारिश में पैदा होने वाली फसल है। यही वजह है कि इसे 'अकाल का अनाज' या 'गरीब का चावल' भी कहा जाता है। आज से करीब 30-40 साल पहले इसकी जमकर खेती की जाती थी, लेकिन जैसे-जैसे खेती करने के तरीकों में बदलाव आया, उसके साथ ही ये गोल-गोल कोदो की खेती भी कम होती गई। मौजूदा दौर में इसकी खेती नाममात्र के रूप में हो रही है। कह सकते हैं कि कुटकी (कोदो) अनाज विलुप्त होने के कगार पर है। 

What is Kutki Kodo
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कुटकी (कोदो) पर दस्‍तावेजीकरण 
पारंपरिक ज्ञान का आज के वैज्ञानिक तथ्‍यों के साथ किस प्रकार जांच-परख कर सकते हैं और कैसे लोगों को लाभान्वित कर सकते हैं? इन्हीं सब बातों को ध्यान में  रखते हुए नेशनल अवॉर्ड प्राप्‍त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कुटकी और अन्‍य श्रीअन्‍न की खेती की प्रक्रिया का दस्‍तावेजीकरण कर रही हैं। 

 

What is Kutki Kodo
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साइंस एंड हेरिटेज रिसर्च इनिशिएटिव
सारिका ने बताया कि फसल की बुआई से लेकर कटाई, भंडारण एवं उससे तैयार किए जाने वाले आदिवासी व्‍यंजनों की जानकारी ले रही हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत साइंस एंड हेरिटेज रिसर्च इनिशिएटिव जिसे श्री कहा जाता है की पहल पर दस्‍तावेजीकरण कर रही हैं।

कुटकी (कोदो) का महत्व 
खेती कर रहे आदिवासी परिवारों ने इसका महत्‍व बताते हुए कहा कि कुटकी में जश है- इसे काटो, घर लाओ, कूटो, पीसो या पकाओ... ये हर स्थिति में बिखरता है। इसे दस साल भी रख लो, इसमें न तो कोई कीट लगता, न ही किसी तरह से ख़राब होती है।  माना जाता है कि ये जितनी पुरानी होती जाती है, उतनी ही गुणकारी भी होती है। खास बात यह है कि  इसका उत्‍पादन बिना किसी रसायनिक खाद या केमिकल वाली दवाओं के होता है।

What is Kutki Kodo
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कोदों के उत्‍पादन में कमी आने की वजह 
सारिका ने बताया कि वर्तमान में कुटकी की फसल सीमित क्षेत्र में लगाई जा रही है। इसका उपयोग उनका परिवार ही महिलाओं को डिलेवरी के बाद दो से छह माह तक पोषण के लिए दवा के रूप में दिया जा रहा है। इसका कोई विशेष व्‍यंजन न बनाकर वे सिर्फ पानी मे उबालकर बनाते हैं। एक हजार से अधिक लोगों से बातचीत कर यह बताया कि कोदों के कुछ पौधों में नशा और उल्‍टी कराने का दुगुर्ण देखा गया है। इस कारण कोदों का उत्‍पादन लगभग समाप्‍त कर दिया है।

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किचन में लाएं कोदो, हेल्दी रहें 
सारिका ने बताया कि इसकी पारंपरिक खेती के तरीके को जीवित रखने में इसके आर्थिक पक्ष को मजबूत करना होगा इसके लिये शहरी नई पीढ़ी जो इनसे अनभिज्ञ है उसे इसके निरंतर उपयोग के लिये प्रेरित करना होगा। कुटकी को अब आप सभी के  किचन तक पहुंचाने की आवश्‍यक्‍ता है। कोदो से आटा भी बनाया जा सकता है।  इसे चावल के तौर भी खा सकते हैं। इससे दाल भी बनाने का चलन रहा है। आयुर्वेद में कोदो को बल बढ़ाने वाला और पुष्टिकारक माना जाता है। कोदो की खेती गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे मैदानी इलाकों में होती है, जबकि कुटकी की खेती उत्तराखंड जैसे इलाकों में होती है।

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एमपी के इन जिलों में होती है खेती
एमपी के डिंडौरी, मंडला, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, सीधी, सतना, रीवा, सिंगरौली, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, मुरैना, भिंड जिले में कोटो-कुटकी, की खेती होती है। एमपी में कोदो-कुटकी का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2023 में कोदो-कुटकी की खेती एक लाख 56 हजार हेक्टेयर में की गई है। वर्ष 2021-22 में 77 हजार टन उत्पादन हुआ। 2018-19 में 57 हजार टन था। 2019-20 में 73 हजार और 2020-21 में 70 हजार टन रहा। 

CM ने केंद्र सरकार से समर्थन मूल्य देने का किया अनुरोध 
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने केंद्र सरकार से कोदो-कुटकी का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4290 रुपए देने का अनुरोध किया है। ताकि प्रदेश के जनजातीय किसानों को लाभ मिल सके। सीएम के अनुरोध को केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है। केंद्रीय मंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रकरण में उचित निर्णय लेने का आश्वासन दिया है। 

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