Narendra Dabholkar Murder Case: महाराष्ट्र में 11 साल बाद नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का मामला सुर्खियों में है। इसकी वजह पुणे की एक विशेष अदालत है, जिसने शुक्रवार, 10 मई को दो आरोपियों सचिन अंदुरे और सारद कालस्कर को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने तीन अन्य लोगों- वीरेंद्र तावड़े, वकील संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने तावड़े को इस मामले का मुख्य साजिशकर्ता बताया था। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ 2016 में चार्जशीट दाखिल की थी। 2013 के इस हत्याकांड की सुनवाई 2021 में शुरू हुई थी। पुणे सत्र न्यायाधीश पीपी जाधव ने पिछले महीने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
Activist Narendra Dabholkar murder case | A Special Court in Pune acquits accused Virendrasinh Tawde, Sanjeev Punalekar and Vikram Bhave. Accused Sachin Andure and Sharad Kalaskar sent to life imprisonment.
— ANI (@ANI) May 10, 2024
Narendra Dabholkar was shot in Pune on August 20, 2013.
कौन थे नरेंद्र दाभोलकर?
नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र्र में एक सोशल एक्टिविस्ट थे। उनका जन्म 1 नवंबर 1945 को हुआ था। उनके बड़े भाई देवदत्त दाभोलकर अच्युत गांधीवादी समाजवादी विचारक थे। नरेंद्र ने मिराज के सरकारी मेडिकल कॉलेज सो एमबीबीएस की पढ़ाई की थी। इसके बाद राष्ट्रीय सेवा दल के संपर्क में आए। इसकी विचारधारा से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने समाजसेवा की ठान ली। उन्होंने समाज में प्रचलित अंधविश्वास का मुकाबला करने के लिए तर्कवाद और वैज्ञानिक तर्क लाने के लिए उद्देश्य से राष्ट्रीय सेवा दल जॉइन कर लिया।
नरेद्र दाभोलकर ने 12 साल तक डॉक्टरी की थी। लेकिन जैसे-जैसे उनका मन समाजसेवा में रमता गया, उन्होंने डॉक्टरी का पेशा छोड़ दिया। वे अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के साथ भी काम किया, लेकिन मतभेदों के कारण कुछ वर्षों बाद उन्होंने संगठन को छोड़ दिया। यहां से उन्होंने अपना नया मार्ग प्रशस्त किया। नव अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के नाम से संगठन बनाया और अपनी गतिविधियों को जारी रखा। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं।
पुणे में हुई नरेंद्र दाभोलकर की हत्या
पुणे में 20 अगस्त, 2013 की सुबह नरेंद्र दाभोलकर वॉक पर निकले थे। तभी दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली मार दी थी। हत्या के एक साल बाद मामले को सीबीआई को सौंपा गया था। दाभोलकर की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था। उनकी हत्या के बाद महाराष्ट्र सरकार ने अंधविश्वास विरोधी कानून लगाया था। सरकार इस कानून को 2003 से पारित कराना चाहती थी।