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आर्ट लोक स्टूडियोज ऑफ रियालस्टिक विजुअलाइजेशन का सोलो सागा 2.0 दो दिवसीय दूसरा राष्ट्रीय नाट्य समारोह 9 एवं 10 मार्च को रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप में मनाया जा रहा हैं।

भोपाल। आर्ट लोक स्टूडियोज ऑफ रियालस्टिक विजुअलाइजेशन का सोलो सागा 2.0 दो दिवसीय दूसरा राष्ट्रीय नाट्य समारोह 9 एवं 10 मार्च को रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप में मनाया जा रहा हैं, जिसके अंतर्गत शनिवार की शाम प्रख्यात अभिनेता आलोक चटर्जी का नाटक ‘कोई समझा नहीं’ का मंचन किया गया। आधे घंटे के इस नाटक में लेखन रफी शब्बीर का रहा, परिकल्पना, निर्देशन व सोलो अभिनय आलोक चटर्जी का साथ ही वेशभूषा शोभा चटर्जी की रही।

नाटक की कहानी
नाटक की कहानी शुरु होती है एक व्यक्ति से, जो मछली मारने रोज तालाब किनारे आता है, अपनी और आसपास की चीजों पर टिप्पणी देता है>  सामाजिक संदर्भों पर अपने विचार व राय रखता है। यह कौन है, क्यों यहां आता है, उसका उद्देश्य क्या है, यही प्रस्तुति का सार है। कहानी परतदार परत खुलती जाती है और आम आदमी से जुड़ती चली जाती है। जहां यह व्यक्ति समाज और लोगों की मानसिकता को बड़े ही रोचक तरीके से प्रस्तुत करता चला जाता है। नाटक में कहानी से मिलती जुलती रियालिस्टक मंच सज्जा रही, जिसमें पानी के दृश्य को दिखाने के लिए पीछे नीली लाइट का प्रयोग किया गया तथा वहीं बगल में रखे बक्से पर बैठा अभिनेता मछली पकड़ने का अभिनय कर रहा हैं। 

करीब सात नाटकों में किया सोलो अभिनय
करीब सात नाटकों में सोलो अभिनय प्रस्तुत करने वाले अभिनेता आलोक चटर्जी ने अपनी सोलो अभिनय यात्रा के बारे में बताया कि एक तरह से देखा जाए तो सोलो अभिनय अपने आप में काफी मुश्किल है क्योंकि एक ही व्यक्ति को काफी लंबे समय तक दर्शकों को बांधे रखना पड़ता है। उन्होंने कहा कि जब मैंने 1989 में पहला सोलो निर्मल वर्मा का ‘डेढ़ इंच ऊपर’ किया था, तब मैं लोगों के घरों में जाकर अभिनय किया करता था, क्योंकि उस वक्त ऑडिटोरियम तो होते नहीं थे। आंगन में दर्शकों को बिठाकर या बरांडे में टेबल कुर्सी लगाकर बैठा दिया जाता था। ऐसे में मैं सोलो अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लेता था और आज बड़े मंच पर सोलो अभिनय की बात ही अलग है।

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