Gyanvapi Mosque-Kashi Vishwanath temple dispute Updates: वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के बीच स्वामित्व विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को अहम फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर सभी 5 याचिकाओं को खारिज कर दिया। इनमें दो याचिकाएं मेरिट से जुड़ी थीं, जबकि तीन एएएसआई सर्वे के खिलाफ थीं। हाईकोर्ट ने वाराणसी अदालत से 1991 में दायर इन दीवानी मुकदमों में से एक की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया। यह केस वाराणसी कोर्ट में दायर है। पांचों याचिकाओं पर फैसला जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने दिया।
हाईकोर्ट में लंबित थीं पांच याचिकाएं
हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि हाईकोर्ट में पांच रिट याचिकाएं लंबित थीं। जिनमें से 2 याचिकाएं यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की ओर से दाखिल की गई थीं। पुरानी मुकदमे की स्थिरता के खिलाफ रिट याचिकाएं दायर की गई हैं। ये 2 याचिकाएं जिला न्यायाधीश, वाराणसी के 1998 के फैसले के खिलाफ हैं। कोर्ट ने सभी को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने वाराणसी अदालत को निर्देश दिया है कि हिंदू पक्ष ने 1991 में जो याचिका लगाई थी, उस पर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का प्रभाव नहीं है।
Allahabad High Court rejects petitions of Sunni Central Waqf Board and Anjuman Intezamia Masjid Committee regarding the ownership between Gyanvapi Mosque and Kashi Vishwanath Temple in Varanasi
— ANI (@ANI) December 19, 2023
ज्ञानवापी में मांगी गई थी पूजा की अनुमति
देवता आदि विश्वेश्वर विराजमान की ओर से वाराणसी अदालत में दायर 1991 के मुकदमे में विवादित परिसर पर नियंत्रण और वहां पूजा की अनुमति मांगी गई थी। इस मुकदमे को चुनौती देते हुए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने तर्क दिया था कि यह पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत चलने योग्य नहीं है, जो 15 अगस्त 1947 में मौजूद धार्मिक स्थानों के स्वरूप को बदलने पर प्रतिबंध लगाता है।
1991 के मुकदमे के याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि ज्ञानवापी विवाद आजादी से पहले का है और यह पूजा स्थल अधिनियम के तहत नहीं आएगा।
#WATCH At the hearing today in the High Court regarding the Gyanvapi case, lawyer Vijay Shankar Rastogi says, "Five writ petitions are pending in the High Court. Out of which 2 petitions have been filed by UP Sunni Waqf Board and Anjuman Intezamia Masjid. The old writ petitions… pic.twitter.com/CTF2l7GRCZ
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) December 19, 2023
8 दिसंबर को सुरक्षित रखा था फैसला
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि 1991 का मुकदमा चलने योग्य है और धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम 1991 द्वारा वर्जित नहीं है। जस्टिस अग्रवाल ने याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी के वकीलों को सुनने के बाद 8 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने मंगलवार को कहा कि किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति या तो मस्जिद होगी या मंदिर की। लेकिन इसे निर्धारित करने के लिए साक्ष्य की जरूरत होगी। अदालत ने कहा कि यह मुकदमा देश के दो समुदायों पर असर डालता है। इसलिए ट्रायल कोर्ट को 6 महीने के भीतर मुकदमे का निपटारा करना होगा।