काशी (वाराणसी) के मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन खेले जाने वाले इस रंगोत्सव को मसाने की होली कहते हैं। गुरुवार को इस होली उत्सव में एक लाख से ज्यदा श्रद्धालु शामिल हुए। होली के गीत और बाबा भोलेनाथ के भजनों की धुन जनकर थिरके। साथ ही एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाया।
भोलेनाथ ने की थी मासाने की होली की शुरूआत
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में मसाने की होली चिताओं की भस्म से खेली जाती है। पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि मसाने की होली की शुरुआत भगवान भोलेननाथ ने की थी। रंगभरी एकादशी के दिन गौना करने के बाद माता पार्वती के साथ वह काशी आए थे और अपने गणों के साथ जमकर होली खेली थी। इस दौरान भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व और किन्नर जीव जंतु ने चिता की भस्म से होली खेली थी। जिसे बाबा के भक्त आज भी भस्म की होली खेलते हैं।
इकलौता शहर जहां धधकती चिताओं के बीच होली उत्सव
बनारस देश का इकलौता शहर है, जहां धधकती चिताओं के बीच भस्म से होली खेलने की परंपरा है। बाबा विश्वनाथ के भक्त चिता भस्म से होली खेलते हैं और भजनों की धुन पर खूब झूमते हैं। साथ ही चिता की भस्म एक दूसरे पर अर्पित कर सुख, समृद्धि के लिए भोलेनाथ से कामना करते हैं।